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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१३४

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साहब को दिया जाता तो अच्छा था, बरसों हुसनाबाई के साथ मंजीरे बजा चुके हैं।"

इस पर सब ने अट्टहास किया।

"और यह भी अफवाह थी कि दर साहब की हुसना से कुछ रिश्तेदारी भी है---यह उसके सौतेले भाई हैं शायद!"

"इस समय तो ब्रजनन्दन ने दर साहब को दाब लिया।" महेन्द्रसिंह हंसते हुए बोला।

दर महाशय बोले--"हाँ इस समय तो इसकी चढ़ बनी हैं।"

"अच्छा जलसा होगा, दावत होगी--और?" एडवोकेट साहब ने पूछा।

"और रोशनी होगी। कोठी बिजली की रोशनी से जगमगा उठेगी।"

"और"

"और क्या होता है। नौकर-चाकरों को इनाम-इकराम बटेगा।"

"ब्रजनन्दन के लिए चाँदी के कड़े बनवा दीजिएगा।" दर साहब बोले।

"अबे सोने के बनवाने की सिफारिश कर, अन्त को तेरी बहिन के ही पास जायँगे। मैं तो बेच-बाच कर उसी को खिला दूँ।"

इस पर पुनः हँसी हुई।

"आज तो ब्रजनन्दन बहुत चर्ब बैठ रहा है।"

इसी प्रकार के हंसी-मजाक के साथ-साथ जयन्ती का प्रोग्राम बनता रहा।

( ४ )

रायबहादुर साहब की सुवर्ण-जयन्ती की तैयारयिाँ हो रही थीं।

रामू अपने पिता से बोला--"चाचा, कल से हम खोंचा नहीं लगायंगे।"