सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
-१२६-
 

"क्यों?"

"कल से हम बाबू श्यामाचरण के यहाँ काम करेंगे।"

"क्या नौकरी?"

"उनके यहाँ कुछ है---जयन्ती कहते हैं उसे! उसकी तैयारी हो रही है। बड़े बड़े जलसे होंगे, दावत होगी, कोठी सजाई जायगी।"

"हाँ! हाँ! फिर?"

"उसके लिए कुछ आदमियों की जरूरत है। हम से भी पूछा गया था, हमने मंजूर कर लिया।"

"क्या मिलेगा?"

"खाना और एक रुपया रोज!"

"कितने दिन का काम है?"

"आठ-दस दिन का है। उसके बाद फिर खोंचा लगाने लगूँगा।"

"ठीक है!"

रात में राम को माँ बोली---"भगवान रामू को चिरंजीव रक्खे बड़ी मदद मिली इससे!"

"हाँ लड़का होनहार है।"

"इसका ब्याह कर देना चाहिए।"

"सो तो करना ही पड़ेगा।"

"हमारा बुढ़ापे का सहारा तो यही है।"

"और क्या, और हमारा कौन बैठा है।"

दूसरे दिन से रामू कोठी में काम करने लगा। कागज की झण्डियाँ तथा फूलों से कोठी खूब सजाई गई। बिजली की रोशनी के लिए कोठी पर असंख्य बत्तियाँ लगाई गईं।

जयन्ती का दिन आ पहुँचा कोठी के द्वार पर शहनाई बजने लगी। सबेरे बाबू साहब की पत्नी ने बाबू साहब से पूछा---"औरतों को खिलाने का प्रवन्ध किसके सिपुर्द रहेगा?"

"औरतों को खिलाने का प्रबन्ध तुम करोगी! यह काम तुम्हारा है, मेरा नहीं।"