"तो बस बन गया काम। सीढ़ी लगवानो मैं बतियाँ लाता हूँ।"
ब्रजनन्दन बतियाँ ले आया, इधर आदमियों ने सीढ़ी लगा दी।
रामू बतियाँ लेकर सीढ़ी पर चढ़ने लगा।
"सीढ़ी थामे रहना, ऐसा न हो फिसल जाय।" रामू ने कहा।
सीढ़ी लगाने वाले बोले--"हाँ, हम साधे हैं---बेखौफ चढ़ जाओ।"
रामू ऊपर पहुँच गया। कंधे के बल दीवार से टिक कर वह बत्तियाँ बदलने लगा। परन्तु ज्यों ही उसने होल्डर पकड़ा त्यों ही एक जोर का झटका लगा--रामू उस झटके से पीछे की ओर झुका--उसने सधने की चेष्टा की परन्तु सध न सका। और सिर के बल नीचे पक्के फर्श पर आ गिरा।
बाबू साहब जलसा देख रहे थे। भांड़ों की नकल हो रही थी खूब कह कहे लग रहे थे। उसी समय एक आदमी घबराया हुआ आकर बोला---"एक आदमी मर गया सरकार!"
बाबू साहब नशे में झूमते हुए बोले--"तो उठवा कर फेंकवा दो साले को।"
"आप पर से न्योछावर हो गया अब आप बहुत दिन जीवित रहेंगे।" एक महाशय बोले।
"दारोगा जी आप जरा चले चलिए!"
"क्यों मजे में खलल डालते हो। पड़ा रहने दो, अभी उठाकर पंचायत नामा कर लेंगे। कैसे मर गया?"
"बत्तियां बदलने चढ़ा था, सीढ़ी से पर गिर पड़ा। उसके बाप को खबर दी है वह आता ही होगा।"
"आने दो साले को! क्या कर सकता है। किसी ने मार थोड़े ही डाला है।"
श्यामसिंह ने आकर पुत्र की लाश देखी बेहोश होकर लाश पर गिर पड़ा।
इधर तो श्यामसिंह के लिए संसार अन्धकारपूर्ण हो गया। उसकी