पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१६४

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लगी। कुछ खाऊ वीर काँग्रेसमैनों की बन आई! सेकेन्ड क्लास का किराया तथा होटल-खर्च लेकर प्रान्तीय नेताओं के पास जाने लगे। एक बार के जाने में कार्य नहीं हुआ, तीन-तीन चार चार बार जाना पड़ा। कभी कोई नेता मिला नहीं, कभी अस्वस्थ मिला, कभी सोच कर उत्तर देने को कहा।

अन्ततोगत्वा काफी दौड़ धूप होने के पश्चात एक नेता महोदय को पुस्तकालय का उद्घाटन करने के लिए राजी कर लिया।

भूतपूर्व रायबहादुर साहब ने खूब सजावट की। रोशनी का प्रबन्ध भी अच्छा किया। गांधी-जयन्ती वाले दिन बड़े धूमधाम से पुस्तकालय का उद्घाटन कार्य सम्पन्न किया गया। पार्टी भी हुई जिसमें नगर के सभी कांँग्रेसी तथा अन्य प्रतिष्ठित नागरिक सम्मिलित हुए।

नगर काँग्रेस कमेटी के एक पदाधिकारी ने सम्पत्तिलाल जी से कहा--"अब आपके एम० एल० ए० होने में कोई सन्देह नहीं रहा।"

सम्पत्तिलाल जी बड़े प्रसन्न! उनकी कोठी निठल्ले कांँग्रेसियों का अड्डा बन गया। जब देखिए दो-चार डटे हैं और राजनीति पर बहस तथा वार्तालाप हो रहा है।

राजनीति को छोड़कर अन्य किसी विषय पर बात करना हराम था! कभी गांधी जी पर बात हो रही है, कभी नेहरू जी की चर्चा चल रही है, कभी पटेल की मीमान्सा हो रही है, कभी ब्रिटिश सरकार की भावी नीति पर अटकलें लगाई जा रही हैं, कभी कम्यूनिस्टों को कोसा जा रहा है, कभी नौकरशाही की आलोचना हो रही हैं! राजनीति सम्बन्धी कोई ऐसा विषय या विख्यात व्यक्ति न होगा जिस पर इन लोगों की अपनी निजी राय न हो। भोजन करने बैठे हैं----एक कौर खाकर जब तक पांँच मिनिट राजनीति पर बात न हो जाय तब तक दूसरा कौर उठाना हराम। इन लोगों की सङ्गत में सम्पत्तिलाल भी अपने को नेता समझने लगे। स्थानीय पत्रों में आपके छोटे-मोटे वक्तव्य भी निकलने लगे। किसी दिन कांग्रेस को वोट देने की अपील निकल रही है, किसी दिन अनाज और कपड़े की दिक्कत पर सम्पत्तिलाल जी