"परन्तु कांग्रेस हमें अपना केंडीडेट चुन लेगी?"
"आप ने इतना त्याग किया है, खिताब छोड़ा, खद्दर धारण किया, अब तो आपको चुनने में कोई आपत्ति न होना चाहिए।"
"आप लोग प्रयत्न करें तो सम्भव हो सकता है।"
"कांग्रेसी भाई आपस में परामर्श करके बोले "एक काम कीजिए! प्रान्त के दो बड़े नेताओं को अपने यहाँ निमंत्रित कीजिए।"
"निमंत्रित करने का कोई अवसर भी तो होना चाहिए।'
"अवसर तो गांधी-जयन्ती के रूप में आ रहा है। खूब सजावट, रोशनी, इत्यादि कीजिए। उसी में कोई ऐसी बात रख दीजिये कि जिसमें उनको बुलाया जा सके।"
"वही तो सोचना है।"
"केवल मीटिंग रखने से तो काम चलेगा नहीं।"
"कोई उद्घाटन हो तो काम बन जाय।"
"न हो गांधी जयन्ती के स्मारक रूप एक गांधी पुस्तकालय ही स्थापित कर दीजिए।"
"यह काम सब से सरल है।"
"हाँ यह हमारे लिए सरल है। अपने किसी मकान का थोड़ा भाग पुस्तकालय के लिए दे दें और हमारे यहाँ अपना निजी पुस्तकालय हई है वह उठवा कर वहाँ रखवा दें।"
"वाहवा! यह तो बड़ी सरलता-पूर्वक हो जायगा।"
"तो फिर इसके लिए अभी से तैयारी की जाय।"
चार दिन पश्चात स्थानीय पत्रों में समाचार निकला।
"श्री सम्पत्तिलाल जी की उदारता! हमारे नगर के गण्यमान रईस श्री सम्पत्तिलाल जी, जो अपना रायबहादुरी का खिताब त्याग कर काँग्रेस में सम्मिलित हो गए हैं गांधी-जयन्ती के पुण्यावसर पर 'गांधी पुस्तकालय' की स्थापना करेंगे। पुस्तकालय का उद्घाटन किसी प्रान्तीय नेता द्वारा होगा।"
यह समाचार निकलने के बाद प्रान्तीय नेताओं के पास दौड़ होने