पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१८६

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स्वयंसेवक

(१)

अनोखेलाल अपने गाँव आया हुआ है। जाति का कुर्मी तथा वयस २४, २५ साल के लगभग है। दो वर्ष पूर्व नौकरी की तलाश में शहर गया हुआ था।

गाँव के परिचित लोग अनोखेलाल से मिलने आने लगे। "अरे भइया बहुत दिन में गाँव की सुधि ली––शहर में ऐसे रम गये।" "कभी होली-दिवाली भी न आये।" "शहर में जाकर फिर देहात में आने को जी नहीं होता।" इस प्रकार लोग कह रहे थे। अनोखेलाल सबको उत्तर देता था।

एक व्यक्ति ने पूछा––"वहाँ क्या काम करते हो भइया!"

"शहर में काम की क्या कमी है––आदमी मेहनती होना चाहिए।"

"तुम क्या काम करते हो?"

"मैं तो सेवा-समिति में काम करता हूँ।"

"सेवा-समिति में!"

"हाँ! वहाँ एक बहुत बड़ी सेवा-समिति है उसी में स्वयंसेवक हूँ।"

एक संस्कृतज्ञ पण्डित हाथ पर तमाखू फटफटाते बोले––"वेतनभोगी स्वयंसेवक?"

"हाँ वेतन मिलता है।"

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