पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
-५५-
 

कथा समाप्त होने पर जब दद्दू चले तो गंगापुत्र ने पूछा---"कैसी रही।"

"ठीक है! भई, अर्थ और व्याख्या करने में खींच-तान बहुत करते हैं।"

"दद्दू यह तो हम जानते नहीं! इतना पढ़े ही नहीं हैं। हमें तो सुनने में अच्छी लगती है।"

"हाँ! खैर तुम उन गूढ़ बातों को नहीं समझ सकते। लेकिन एक बात बताता हूँ।"

"कहिये।"

"कोई न कोई काण्ड होने ही वाला है।"

"काण्ड कैसा दद्दू?"

"बस देख लेना। इतनी बात बता दी है।"

"अरे नहीं दद्दू! काण्ड-वाण्ड कुछ न होगा। हम लोग यहाँ क्या खाली चन्दन घिसने को बैठे हैं। जरा कोई बात देखें तो मारे लाठियों के भुरकुस निकाल दें।"

"तुम्हें पता लगेगा तब तो।"

"हमसे कोई बात नहीं छिप सकती।"

"हमें जो नाव वाला ले गया था उससे पूछना।"

"अच्छा!"

"हाँ!"

"हम अभी बुलाते हैं।"

यह कहकर उसने मोहन से कहा---"जरा शिवनाथ को बुला लेना।"

थोड़ी देर में शिवनाथ आगया। शिवनाथ से दद्दू ने पूछा---"ये औरतें कौन थीं?"

"मैं नहीं जानता सरकार! जयदयाल की नाव पर गयी थीं।"

"अच्छा उसे बुलाओ।"

जयदयाल के पर उससे भी यही प्रश्न किया गया। जयदयाल