"तब तो हमें मुसलमान को वोट देना पड़ेगा। हम हिन्दू को वोट काहे को दें।"
प्रौढ़ चचा हँस कर बोला––"अरे तुम समझे नहीं! हम तो मुसलमान को ही देंगे।"
"तुमने कहा न कि काँग्रेस की तरफ से खड़ा होगा।"
"होयगा वह भी मुसलमान ही हिन्दू नहीं होगा।"
"क्या मतलब मैं समझा नहीं।"
"तुम गावदी ही रहे। अरे भइया दो मुसलमान खड़े होंगे, एक मुसलमीन की तरफ से और एक काँग्रेस की तरफ से।"
"अच्छा काँग्रेस की तरफ से भी मुसलमान ही खड़ा होगा।"
"हाँ!"
"तब फिर क्या खौफ है। गाँव वाले जिस मुसलमान को कहेंगे, उसे वोट दे देंगे।"
"सो तो करना ही पड़ेगा।"
"गाँव के खिलाफ नहीं जा सकते।"
"यही तो मुस्किल है।"
(२)
चुनाव का दिन निकट आ गया। एक दिन एक मुसलमान कान्स्टेबिल गश्त करता हुआ सीरामऊ भी आ निकला। मुसलमानों ने उसका स्वागत किया। खाना-वाना खाने के बाद मु॰ कान्स्टेबिल बोला––"तुम किसे वोट देओगे?"
"अब हम यह सब क्या जानें! जिसे आप कहें उसे दे दें।"
"मुसलिम लीग के आदमी को देना।"
"मुसलिम लीग क्या है?"
"मुसलिम लीग मुसलमानों की एक जमात है। वह पाकिस्तान बनवायगी।"