पानी पीने का इन्तजाम है––मुसलमानी तम्बू में पलेटें चल रही थीं। वह अपने साथियों से बोला––"हम जरा उधर घूम आवें! तुम लोग यहीं मिलना।"
उसके साथी दोनों तम्बुओं के बीच में टहल रहे थे, कभी लीग के तम्बू को देखते थे कभी काँग्रेस के। जिस ओर के आदमी बुलाते थे उस ओर मुस्करा कर कह देते थे––"आ जाएँगे! ऐसे जरा टहल रहे हैं।"
इधर करीम ने एक पलेट साफ की, पानी पिया और पान खाया।
इसी समय एक वालंटियर बोला––"चलो तुम्हारा वोट डलवादें।"
करीम बोला––"चलो!"
रास्ते में सोचता जा रहा था कि कहदेंगे जबरदस्ती पकड़ ले गये।
जब अन्दर पहुँचा तो कलेजा धड़कने लगा। सुना था अन्दर डिप्टी साहब होंगे। पुलिस होगी। पुलिस को भी देखा, डिप्टी साहब भी जरूर ही होंगे। मुँह सूख गया।
जिस समय उससे प्रश्न किया गया कि किसे वोट देओगे तो वह दोनों नाम भूल गया। वह भयभीत नेत्रों से मुँह ताकने लगा।
फिर प्रश्न किया गया––"किसे वोट देओगे! जल्दी बोलो।"
करीम का दिमाग चकराने लगा। इसी समय एक ने राष्ट्रीय मुसलमान का नाम लेकर कहा––को वोट दोगे?
करीम ने प्राण ऐसे पाये! जल्दी से बोला––"हाँ! हाँ! इन्हीं को।"
क्लर्क ने क्रास लगाकर वोट-बक्स के अन्दर डाल दिया।
वह लौटने लगा तो एक मुसलिम लीगी बोला––"तुमने तो काँग्रेस के मुसलमान को वोट दिया।"
"म्याँ कुछ बोलो नहीं।"
"तुमने बताया भी नहीं। हम भूल गये।"