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"बड़े गँवार हो।"
बाहर आकर जब अपने साथियों से मिला तो उन्होंने पूछा––
"किसे वोट दिया?"
करीम बोला––"कुछ पूछो नहीं। हम घबड़ा गये।"
"वोट किसे दिया।"
"काँग्रेस के आदमी को।"
"ठीक है! गये मुसलिम लीग के आदमी के साथ और वोट काँग्रेस को दिया!"
"हाँ! हाँ! लीग वाले ज़बरदस्ती पकड़ ले गये। वहाँ जाकर हमने काँग्रेस के मुसलमान को वोट दिया।"
परन्तु उसकी बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया। करीम को यह अफसोस है कि उसका वोट मुस्लिम लीग को नहीं मिला और अन्य लोगों को यह सन्देह है कि उसने मुसलिम लीगी उम्मीदवार को वोट दिया।