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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/८४

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वे गर्म कहे जाते हैं। यद्यपि उन पदार्थों में गर्मी-वर्मी कुछ नहीं होती। यह विज्ञान का मत है।"

"होगा! हम इज्ञान-विज्ञान क्या जानें। हम तो सीधी बात जानते हैं।"

इन्हीं बातों में पौने नौ का समय हो गया। एक महाशय बोले--- "समय हो गया--अब चलना चाहिए।"

"हाँ अब समय हो गया।"

राय बहादुर साहब ने नौकर से कार मँगवाने के लिए कहा और स्वयं कपड़े पहनने चले गये।

( २ )

राय बहादुर साहब फर्स्टक्लास में अपने तीनों मित्रों सहित विराज- मान थे। खेल आरम्भ हो चुका था।

कुछ देर बाद एक उन्नीस-बीस वर्ष की श्वेताङ्ग युवती घुटनों तक फूला हुअा श्वेत घाँघरा सा और उसके ऊपर श्वेत रेशम की एक जाकट सी-बाहें खुली हुई-पहने हुये पाई और दो दौड़ते हुए घोड़ों की पीठ पर अपने कर्तब दिखाने लगो। युवती बहुत सुन्दरी दिखाई पड़ती थी। राय बहादुर साहब स्थिर दृष्टि से उसका कार्य देखते रहे।

जब वह अपना खेल दिखाकर चली गई तब रायबहादुर साहब को मानो होश सा आया। पास बैठे हुए एक मित्र से बोले---"बड़े गजब की लड़की है शरीर में मानो हड्डी हैं ही नहीं।"

"जी हाँ! बड़ा लोचदार शरीर है और नख-शिख भी सुन्दर है।"

"क्या कहने हैं। हूर की बच्ची है।" दूसरे मित्र ने कहा।

"इसको बहुत तनख्वाह मिलती होगी।"

"हाँ! इसमें क्या संदेह है।"

"भला कितनी मिलती होगी?" रायबहादुर साहब ने पूछा।

"हजार-पाँचसौ तो मिलते ही होंगे।"