उनके चले जाने पर आप झट पत्नी के पास पहुंँचे और बोले--- "इतने दिन बाद आज एक सम्बन्ध आया है।"
पत्नी उत्सुक होकर बोली---'अच्छा! कहाँ से?"
"--के रहने वाले हैं। पाँच-छः सौ रुपये महीने की रियासत है।"
"खैर उनसे हमें क्या मतलब। हाँ घर अच्छा है।"
"मतलब क्यों नहीं, लड़की अकेली है और कोई बच्चा नहीं है। हमारा लड़का ही रियासत का मालिक होगा।"
पत्नी प्रसन्न होकर बोली---"यह तो बड़ी अच्छी बात है। तो बस पक्का कर लो।"
"कुण्डली मिला कर ब्याह करेंगे। जो कुण्डली न मिली तो?"
"तो फिर भगवान की मरजी। उसमें हम---तुम क्या कर सकते हैं।"
परन्तु पण्डित जी का ऐसा विश्वास नहीं था। उन्होंने सोचा--- "कुण्डली मिलाना तो अपने हाथ की बात है, इसमें भगवान क्या कर सकता है।"
यह सोच कर आप बोले--"अच्छा! कुण्डली ईश्वर चाहेगा तो मिल ही जायगी।"
दूसरे दिन जब लड़की वाले कुण्डली मांगने आये तो आप उनसे बोले "कुण्डली तो नाना के घर में है। बात यह है कि लड़का अधिकतर वहीं रहा है, इस कारण वहीं है। मैंने अाज चिट्ठी डाल दी है---एक सप्ताह में आ जायगी---तब तक आप लड़की को कुण्डली भेज दें।
"लड़की की कुण्डली तो हम साथ ही लाये हैं---यदि आप चाहें तो ले लें।"
पण्डित जी बोले---"हाँ, हाँ, लाइये!"
"बात यह है कि मैं स्पष्ट आदमी हूँ। सब काम साफ और शुद्ध करता हूं।"
"क्या सुन्दर बात कही है आपने! यही मेरा भी स्वभाव हैं।