पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/९३

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सफाई से बढ़ कर और कोई चीज नहीं। तो कुण्डली दे जाइये। लड़के की कुण्डली में आते ही भेज दूँगा। पता दे जाइये अपना।"

उन्होंने लड़की की कुण्डली और लड़के वाले का पता ले लिया।

अब पण्डित जी बड़े प्रसन्न थे। सोचते थे हमने किस युक्ति से लड़की की कुण्डली ले ली। दूसरे ही दिन आपने अपने ज्योतिषी जी को बुलवाया और उन्हें लड़की की कुण्डली दिखाई। ज्योतिषी जो कुण्डली देख कर बोले---"लड़की के ग्रह तो बड़े सुन्दर पड़े हैं---राजयोग पड़ा हुआ है।"

"सो तो पड़ेना ही चाहिए। अच्छा हमारे लड़के की भी कुण्डली ऐसी बना दीजिए कि लड़की की कुण्डली से कमजोर न रहे और मिल भी जाय।"

ज्योतिषी जी ने स्वीकार कर लिया।

( २ )

चार दिन पश्चात् ज्योतिषी जी कुण्डली बना कर ले आये। कुण्डली देकर बोले---"बड़ी कठिनता से बनी है, परन्तु महीना, तिथि तथा समय बदल गया---सम्वत् वही रहा।"

"कोई चिन्ता नहीं। मिला कर बनाई है।"

"और क्या इसीलिए तो कठिनता पड़ी।"

"खैर बन तो गई।

"हाँ सो तो बन गई।"

"बस, इतना ही काफी है।"

"मैंने लड़के की कुण्डली में भी राजयोग कर दिया है और लड़का मंगली था सो वह योग भी हटा दिया।"

"बड़ा अच्छा किया। इसी की आवश्यकता थी।"

आपने झट दूसरे दिन जन्म-कुण्डली डाक द्वारा भेज दी।