पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१४३

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रघुवंश ।

उष्ण-श्वास छोड़ते हुए उस बेचारे को कार्तवीर्य के कैदखाने में महीनों पड़ा रहना पड़ा; और, जब तक वह कार्तवीर्य को प्रसन्न न कर सका तब तक उसका वहाँ से छुटकारा न हुआ। वेदों और शास्त्रों के पारङ्गत ‘पण्डितों की सेवा करने वाला प्रतीप नाम का यह राजा उसी कात वीर्य राजा के वंश में उत्पन्न हुआ है। लक्ष्मी पर यह दोष लगाया जाता है कि वह स्वभाव ही से चञ्चल है; कभी किसी के पास स्थिर होकर नहीं रहती। उसकी इस दुष्कीर्ति के धब्बे को इस राजा ने साफ़ धो डाला है। बात यह है कि लक्ष्मी अपने चञ्चल स्वभाव के कारण किसी को नहीं छोड़ती; किन्तु अपने आश्रय-दाता में दोष देख कर ही,विवश होकर, उसे छोड़ देती है। यह बात इस राजा के उदाहरण से निर्धान्त सिद्ध होती है। इसमें एक भी दोष नहीं। इसी से, जिस दिन से लक्ष्मी ने इसका आश्रय लिया है उस दिन से आज तक इसे छोड़ कर जाने का विचार तक कभी उसने नहीं किया । विश्व-विख्यात परशुराम के कुठार की तेज़ धार क्षत्रियों के लिए काल-रात्रि के समान थी। उसकी सहायता से उन्होंने एक नहीं, अनेक बार, क्षत्रियों का संहार कर डाला । परन्तु युद्ध में अग्नि की सहायता प्राप्त करके यह राजा परशुराम के परशु की उस तीक्ष्ण धार की भी कुछ परवा नहीं करता। उसे तो यह कमल के पत्ते के समान कोमल समझता है । अग्नि इसके वश में है। इसकी इच्छा होते ही वह इसके शत्रुओं को, युद्ध के मैदान में, जला कर खाक कर देता है। जिसे इस पर विश्वास न हो वह महाभारत खोल कर देख सकता है। फिर भला यह परशुराम के परशु को कमल के पत्ते के समान कोमल क्यां न समझे ? माहिष्मती नगरी इसकी राजधानी है । वहीं इसका किला है । वह माहिष्मती के नितम्ब के समान शोभा पाता है। जलों के प्रवाह से बहुत ही रमणीय मालूम होने वाली नर्मदा नदी उस किलेरूपी नितम्ब पर करधनी के समान जान पड़ती है। इसके महलों की खिड़कियों में बैठ कर यदि तू ऐसी मनोहारिणी नर्मदा का दृश्य देखना चाहे तो, खुशी से,इस लम्बी लम्बी भुजाओं वाले राजा के अङ्ग की शोभा बढ़ा सकती है--इसकी अर्धाङ्गिनी हो सकती है।"

वर्षा-ऋतु में बादल चन्द्रमा को ढके रहते हैं। परन्तु शरत्काल आते