आदि मङ्गल-सूचक वस्तुओं से रँगी हुई माला, सुनन्दा के दोनों हाथों से,
अज के कण्ठ में, आदरपूर्वक, यथा स्थान, पहनवा दी । उसने वह माला
क्या पहनाई, उसके बहाने मानो उसने अज को अपना मूर्तिमान् अनुराग
ही अर्पण कर दिया। फूलों की उस मङ्गलमयी माला को अपनी चौड़ी
छाती पर लटकती हुई देख, चतुर-चूडामणि अज ने कहा-'यह माला
नहीं, किन्तु विदर्भ-राज भोज की छोटी बहन इन्दुमती ने अपना बाहुरूपी
पाश ही मेरे कण्ठ के चारों तरफ डाला है। इन्दुमती के बाहु-स्पर्श से जो
सुख मुझे मिलता वही इस माला से मिल रहा है।'
अजकुमार के गले में इन्दुमती की पहनाई हुई वर-माला को देख कर, स्वयंवर में जितने पुरवासी उपस्थित थे उनके आनन्द का ठिकाना न रहा । अज और इन्दुमती में गुणों की समानता देख कर वे बहुत हो प्रसन्न हुए । अतएव एक-स्वर से वे सब बोल उठे:- "बादलों के घेरे से छूटे हुए चन्द्रमा से चाँदनी का संयोग हुआ है; अथवा अपने अनुरूप महासागर से भागीरथी गङ्गा जा मिली है। ये वाक्य औरों को तो बड़े ही मीठे मालूम हुए; परन्तु जो राजा इन्दुमती को पाने की इच्छा से स्वयंवर में आये थे उनके कानों में ये काँटे के समान चुभ गये । उस समय एक तरफ तो वर- पक्ष के लोग आनन्द से फूले न समाते थे; दूसरी तरफ आशा-भङ्ग होने के कारण राजा लोग उदास बैठे हुए थे। ऐसी दशा में स्वयंवर-मण्डप के भीतर बैठा हुआ राज-समुदाय प्रातःकालीन सरोवर की उपमा को पहुँच गया-वह सरोवर जिसमें सूर्य-विकासी कमल तो खिल रहे हैं और चन्द्र-विकासी कुमुद, बन्द हो जाने के कारण, मलिन हो रहे हैं।