पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१५१

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रघुवंश।


ऊपर तक पहुँच गया है; समुद्रों को तैर कर उनके पार तक निकल गया है; पाताल फोड़ कर नाग लोगों के नगरों तक फैल गया है; और, ऊपर, आकाश में, स्वर्गलोक तक चला गया है। इसके त्रिकालव्यापी यश की कोई सीमा ही नहीं। कोई जगह ऐसी नहीं जहाँ वह न पहुँचा हो। न वह ताला ही जा सकता है और न मापा ही जा सकता है। यह अज- कुमार उसी राजा रघु का पुत्र है। स्वर्ग के स्वामी इन्द्र से जैसे जयन्त की उत्पत्ति हुई है वैसे ही रघु से इसकी उत्पत्ति हुई है। संसार के बहुत बड़े भार को यह, अपने राज-कार्य-कुशल पिता के समान, उसी तरह अपने ऊपर धारण कर रहा है जिस तरह नया निकाला हुआ बछड़ा, बड़े बैल के साथ जोते जाने पर, गाड़ी के बोझ को उसी के सदृश धारण करता है। कुल में, रूप-लावण्य में, नई उम्र में, और विनय आदि अन्य गुणों में भी यह सब तरह तेरी बराबरी का है । अतएव तू इसी को अपना घर बना। इस अजरूपी सोने का तेरे सदृश स्त्रीरूपी रत्न से यदि संयोग हो जाय तो क्या ही अच्छा हो । मणि-काञ्चन का संयोग जैसे अभिनन्दनीय होता है वैसे ही तुम दोनों का संयोग भी बहुत ही अभिनन्दनीय होगा।"

सुनन्दा का ऐसा मनोहारी भाषण सुन कर, राजकुमारी इन्दुमती ने अपने संकोच-भाव को कुछ कम करके, अजकुमार को प्रसन्नता-पूर्ण दृष्टि से अच्छी तरह देखा। देखा क्या मानो उसने दृष्टिरूपिणी वरमाला अर्पण कर के अज के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया। शालीनता और लज्जा के कारण यद्यपि, उस समय, वह मुँह से यह न कह सकी कि मैंने इसे अपनी प्रीति का पात्र बना लिया, तथापि उस कुटिल-केशी का अज़-सम्ब- न्धी प्रेम उसके शरीर को बेध कर, रोमाञ्च के बहाने, बाहर निकलही आया। वह किसी तरह न छिपा सकी। अज को देखते ही, प्रेमाधिक्य के कारण, उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये।

अपनी सखी इन्दुमती की यह दशा देख कर, हाथ में बेत धारण करने वाली सुनन्दा को दिल्लगी सूझी। वह कहने लगी-"प्रार्थे ! खड़ी क्या कर रही हो ? इसे छोड़ो। चलो और किसी राजा के पास चलें । यह सुन कर इन्दुमती ने रोषभरी तिरछी निगाह से सुनन्दा की तरफ़ देखा।

इसके अनन्तर मनोहर जंघाओं वाली इन्दुमती ने. हलदी, कुमकुम