पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०१
सातवाँ सर्ग।


सामग्रियाँ रक्खी हुई थीं। इन्द्र-धनुष की तरह चमकते हुए रङ्ग-बिरंगे तोरण बँधे हुए थे। मार्ग के दोनों तरफ़ सैकड़ों झण्डियाँ गड़ी हुई थीं। ध्वजाओं और पताकों के कारण सड़क पर सर्वत्र छाया थी । धूप का कहीं नामो-निशान भी न था। अज ऐसे सजे हुए मार्ग से, वहाँ का दृश्य देखते देखते, नगर के समीप आ पहुँचा । अज के आगमन की सूचना पाते . ही नगर की सुन्दरी स्त्रियाँ अपने अपने मकानों की, सोने की जाली लगी हुई, खिड़कियों में जमा होने लगीं। अज को देखने के चाव से वे इतनी उत्कण्ठित हो उठी कि उन्होंने घर के सारे काम छोड़ दिये। जो जिस काम को कर रही थी उसे वह वैसा ही छोड़ कर, अज को देखने के लिए, खिड़की के पास दौड़ आई।

एक स्त्री अपने बाल सँवार रही थी। वह वैसी ही खुली अलकें लेकर उठ दौड़ी। इससे उनमें गुंथे हुए फूल ज़मीन पर टपकते चले गये । परन्तु इसकी उसे खबर भी न हुई । एक हाथ से अपनी बेनी पकड़े हुए वह वैसी ही चली गई। जब तक खिड़की के पास नहीं पहुँची तब तक उसने अपने खुले हुए बाल नहीं सँभाले । जब बालों पर हाथ ही लगाया था तब बाँधने में कितनी देरी लगती। परन्तु उसे एक पल की भी देरी सहन न हुई।

एक और स्त्री, उस समय, अपने पैरों पर महावर लगवा रही थी। उसका दाहना पर नाइन के हाथ में था। उस पर आधा लगाया हुआ गीला महावर चुहचुहा रहा था । परन्तु इस बात की उसने कुछ भी परवा न की। पैर को उसने नाइन के हाथ से खींच लिया, और, अपनी लीला- ललाम मन्द-गति छोड़ कर, दौड़ती हुई खिड़की की तरफ भागी। अतएव जहाँ पर वह बैठी थी वहाँ से खिड़की तक महावर के बूंद बराबर टपकते चले गये और उसके पैर के लाल चिह्न बनते चले गये।

एक और स्त्री, उस समय, सलाई से काजल लगा रही थी। दाहनी आँख में तो वह सलाई फेर चुकी थी। पर बाई में काजल लगाने के पहले ही अज के आने की उसे खबर मिली । इससे उसमें काजल लगाये बिना ही, सलाई को हाथ में लिये हुए ही, वह खिड़की के पास दौड़ गई।

एक और स्त्री का हाल सुनिए । वह बेतरह घबरा कर खिड़की की