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रघुवंश।


खुल गई । परन्तु उसे उसने बाँधा तक नहीं। योंही उसे हाथ से थामे हुए वह खिड़की के पास खड़ी रह गई। उस समय उसके उस हाथ के आभूषणों की आभा उसकी नाभि के भीतर चली जाने से अपूर्व शोभा हुई।

एक स्त्री अपनी करधनी के दाने पोह रही थी। वह काम आधा भी न हो चुका था कि वह जल्दी से उठ खड़ी हुई और उलटे सीधे डग डालते अज को देखने के लिए दौड़ी। इससे करधनी के दाने ज़मीन पर गिरते चले गये। यहाँ तक कि सभी गिर गये। खिड़की के पास पहुँचने पर उसके पैर के अँगूठे में बँधा हुआ डोरा मात्र बाकी रह गया।

इस प्रकार उस रास्ते के दोनों तरफ जितने मकान थे उनकी खिड़कियों में इतनी स्त्रियाँ एकत्र हो गई कि सर्वत्र मुख ही मुख दिखाई देने लगे। कहीं तिल भर भी जगह खाली न रह गई। इससे ऐसा मालूम होने लगा कि उन खिड़कियों में हज़ारों कमल खिले हुए हैं । अज को देखने के लिए अत्यन्त उत्कण्ठित हुई इन स्त्रियों के मुख, कमल के सभी गुणों से, युक्त थे। कमल में सुगन्धि होती है। मुखों से भी सुवासित मद्य की सुगन्धि आ रही थी। कमलों पर भीरे उड़ा करते हैं; मुखों में भी काले काले नेत्र चञ्चलता दिखा रहे थे।

अज को देखते ही पुरवासिनी स्त्रियों ने उसे अपनी आँखों से पीना सा प्रारम्भ कर दिया। उनकी दर्शनोत्कण्ठा इतनी बढ़ी हुई थी कि उस समय उन्हें संसार के और सभी काम भूल गये । यहाँ तक कि नेत्रों को छोड़ कर उनकी और इन्द्रियों ने अपने अपने विषय व्यापार ही बन्द कर दिये । कानों ने सुनना और मुँह ने बोलना छोड़ दिया। सारांश यह कि सारी स्त्रियाँ बड़ी ही एकाग्र-दृष्टि से अज को देखने लगीं। उनका निर्निमेष अवलोकन देख कर यह भासित होने लगा जैसे उनकी अन्य सारी इन्द्रियाँ सम्पूर्ण-भाव से उनकी आँखों ही में घुस गई हो। अजकुमार को अच्छी तरह देख चुकने पर, पुरवासिनी स्त्रियों की दर्शनोत्कण्ठा जब कुछ कम हुई, तब वे परस्पर इस प्रकार बाते करने लगी:-

"कितने ही बड़े बड़े राजाओं ने राजा भोज के पास दूत भेज कर इन्दु- मती की मॅगनी की थी -उन्होंने इन्दुमती के साथ विवाह करने की हार्दिक इच्छा, अपने ही मुँह से, प्रकट की थी-परन्तु इन्दुमती को यह बात पसन्द