पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१९३

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रघुवंश ।

की कमल-समूहरूपिणी सम्पत्ति के पास सैकड़ों भौंरे और जल के पक्षी दौड़ गये । वसन्त आने पर, अशोक के खूब खिले हुए नवीन फूलों ने रसिकों के चित्त चञ्चल कर दिये। उन्हींने क्यों, कामिनियों के कानों में खुसे हुए लाल लाल कोमल पत्तों ने भी उनके हृदयों में उत्कण्ठा उत्पन्न कर दी। कुरबक-नाम के पेड़ों पर तो फूल ही फूल दिखाई देने लगे। उनसे उपवनों का सुहावनापन और भी अधिक हो गया । वे ऐसे मालूम होने लगे जैसे उपवनों की शोभा के शरीर पर, उसके प्रेमपात्र वसन्त ने, चित्र विचित्र टटके बेल-बूटे बना दिये हों । इन पेड़ों ने भाँरों को अपने फूलों का मधु दे डालने की ठानी। अतएव सैकड़ों भौंरे उनके पास पहुँच गये और बड़े प्रेम से गुजार करके उनका गुणगान सा करने लगे। दानियों की स्तुति होनी ही चाहिए । यह देख कर वकुल के वृक्षों से भी न रहा गया। कुरबकों का अनुकरण करके उन्होंने भी दानशील बनना चाहा । इनमें यह विशेषता होती है कि जब तक कोई सौभाग्यवती कामिनी मद्य का कुल्ला इन पर नहीं कर देती तब तक ये फूलते ही नहीं। इस कारण, इनके फूलों में मद्य का गुण भी पाया जाता है। इनके औदार्य का समाचार सुन कर मधु के लोभी मधुकरों की बन आई । उनके झुण्ड के झुण्ड दौड़ पड़े और बेचारे वकुलों पर ऐसे टूटे कि उन्हें व्याकुल कर दिया । एक दो याचक हो तो बात दूसरी है । हजारों का कोई कहाँ तक सत्कार करे।

शिशिर की प्रायः समाप्ति हो चुकी थी। अब था वसन्त का राज्य । उसकी राज्य-लक्ष्मी ने कहा:-"औरों को हमसे बहुत कुछ मिल चुका;एक मात्र पलाशों ही ने अभी तक कुछ नहीं पाया।" यह सोच कर उन्हें उसने लाल लाल कलियों के सैकड़ों गुच्छे दे डाले । उनको भी उसने निहाल कर दिया । स्त्रियों के क्षत-विक्षत औंठों को जाड़ा दुःसह होता है । उन्हें जाड़ों में कमर से करधनी भी उतार कर रख देनी पड़ती है। क्योंकि वह ठंढी मालूम होती है। जाड़ों ही के कारण उन्हें यह सब कष्ट उठाना पड़ता है। सो यद्यपि इस क्लेशदायक जाड़े के जाने का समय आ गया था; तथापि, तब तक सूर्य उसे बिलकुल ही दूर न कर सका था। हाँ, उसने कम उसे ज़रूर कर दिया था।

अब ज़रा नई मजरी से लदी हुई आम की लता का हाल सुनिए ।