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रघुवंश।


तो एक प्रकार के बँधुवे हैं। राजकीय कार्यों में वे सदा बँधे से रहते हैं। इस कारण उन्हें सुखोपभोग के लिए कभी छुट्टी ही नहीं मिलती। अतएव कुमार शिल को राज्य का भार सौंप कर आप अनेक प्रकार के सुख भोगने लगा। चिरकाल तक वह विषयों के उपभोग में लगा रहा। तिस पर भी उसकी तृप्ति न हुई। उसकी सुन्दरता और शक्ति क्षीण न हुई थी कि जरा (वृद्धावस्था) ने उस पर आक्रमण किया। औरों के साथ राजा को विहार करते देख जरा को ईर्ष्या उत्पन्न हुई। जरा में स्वय विहार करने की शक्ति न थी। अतएव उसकी ईर्ष्या व्यर्थ थी। तथापि, फिर भी, जरा सेन रहा गया-दूसरों का सुख उससे न देखा गया। फल यह हुआ कि पारियात्र को औरों से छुड़ा कर उसे वह परलोक को हर ले गई। वह बुढ़ापे का शिकार हो गया।

राजा शिल का पुत्र उन्नाभ नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसकी नाभि बड़ी गहरी थी। वह कमल नाभ (विष्णु) के समान प्रभावशाली था। अपने प्रताप और पौरुष से वह सारे राजाओं के मण्डल की नाभि बन बैठा। सबको अपने अधीन करके आप चक्रवर्ती राजा हो गया।

उसके अनन्तर वज्रणाम नामक उसका पुत्र राजा हुआ। वज्रधारी इन्द्र के समान प्रभाव वाला वह राजा जिस समय समर में वज्र के सदृश घोर घोष करता उस समय चारों तरफ़ हाहाकार मच जाता। वह वज्र अर्थात् हीरेरूपी आभूषण धारण करने वाली सारी पृथ्वी का पति हो गया और चिरकाल तक उसका उपभोग करके, अंत समय आने पर, अपने पुण्यों से प्राप्त हुए स्वर्ग को सिधारा।

वज्रणाम की मृत्यु के अनन्तर, समुद्र-पर्य्यन्त फैली हुई पृथ्वी ने, खानियों से नाना प्रकार के रत्नरूपी उपहार लेकर, शङ्खण नामक उसके पुत्र की शरण ली। इस राजा ने भी अपने शत्रुओं को जड़ से उखाड़ कर और बहुत दिन तक राज्य करके परलोक का रास्ता लिया।

उसके मरने पर सूर्य के समान तेजस्वी और अश्विनीकुमार के समान सुन्दर उसके पुत्र को पिता की राजपदवी प्राप्त हुई। दिग्विजय करते करते वह महासागर के तट तक चला गया। वहाँ उसके सैनिक और अश्व (घोड़े) कई दिन तर्क ठहरे रहे। इसीसे इतिहासकार उसे व्युषिताश्व नाम से