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उन्नीसवाँ सर्ग।
रानी को ही राज्य का अधिकार दे दिया-उसीको राजलक्ष्मी सौंप दी। वंश की विधि के अनुसार रानी का तुरन्त ही राज्याभिषेक हुआ। राजा की मृत्यु के कारण रानी की आँखों से गिरे हुए विपत्ति के उष्ण अाँसुओं से जो गर्भ तप गया था उसे, राज्याभिषेक के समय, कनक-कलशों से छूटे हुए शीतल जल ने ठंढा कर दिया।
रानी की प्रजा बड़े चाव से उसके प्रसव-काल की राह देखने लगी। रानी भी अपने गर्भ को --पृथ्वी जैसे सावन के महीने में बोये गये वीजांकुर को धारण करती है-प्रजा के वैभव और कल्याण के लिए, बड़े यत्न से कोख में धारण किये रही; और, सोने के सिंहासन पर बैठी हुई, बूढ़े बूढ़े मन्त्रियों की सहायता से, अपने पति के राज्य का विधिपूर्वक शासन भी करती रही। उसने इस योग्यता से शासन कार्य किया कि उसकी आज्ञा उल्लङ्घन करने का कभी किसी को भी साहस न हुआ।