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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१२५

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छठा सर्ग।

तिरछी होकर सोने के पायदान पर पड़ने लगीं। यह खेल करके वह उन्हीं उँगलियों से पायदान पर कुछ लिखने सा लगा—उनसे वह रेखायें सी खींचने लगा। इस तरह उसने शायद इन्दुमती को अपने पास आने का इशारा किया, परन्तु इन्दुमती को उसका यह काम अच्छा न लगा। बात यह है कि नखों से ज़मीन पर रेखायें खींचना शास्त्र में मना किया गया है। इससे इन्दुमती ने ऐसा निषिद्ध काम करने वाले राजा को त्याज्य समझा।

एक अन्य राजा ने अपने बायें हाथ की हथेली को आधे सिंहासन पर रख कर उस तरफ़ के कन्धे को ज़रा ऊँचा उठा दिया। उठा क्या दिया, इस तरह हाथ रखने से वह आप ही आप ऊँचा हो गया। साथ ही इसके उसके कण्ठ में पड़ा हुआ हार भी, हाथ और पेट के बीच से निकल कर, पीठ पर लटकता दिखाई देने लगा। अपने शरीर की स्थिति में इस तरह का परिवर्तन करके, अपनी बाँई ओर बैठे हुए अपने एक मित्र राजा से वह बातें करने लगा। इसका भी यह काम इन्दुमती को पसन्द न आया। उसने मन में कहा—इस समय इसे मेरे सम्मुख रहना चाहिए, न कि मुझसे मुँह फेर कर—पराङ्मुख होकर—दूसरे से बातें करना। जब अभी इसका यह हाल है तब यदि मैं इसी को अपना पति बनाऊँ तो न मालूम यह कैसा सुलूक मेरे साथ करे!

एक और तरुण राजपुत्र की बात सुनिए। शृङ्गारप्रिय स्त्रियों के कान में खोंसने योग्य, और, कुछ कुछ पीलापन लिये हुए, केवड़े के फूल की एक पँखुड़ी उसके हाथ में थी। उसी को वह अपने नखों से नोचने लगा। इस बेचारे को ख़बर ही न थी कि उसका यह काम इन्दुमती को बुरा लगेगा। तिनके तोड़ते और नखों से पत्तों आदि पर लकीरें बनाते बैठना बेकारी का लक्षण है। शास्त्र में ऐसा करने की आज्ञा नहीं। इस बात को इन्दुमती जानती थी। इसीसे यह राजा भी उसका अनुराग-भाजन न हो सका।

एक अन्य राजा को और कुछ न सूझा तो उसने खेलने के पासे निकाले। उन्हें उसने, कमल के समान लाल और ध्वजा की रेखाओं से चिह्नित, अपनी हथेली पर रक्खा। फिर अपनी हीरा-जड़ी अँगूठी की आभा से उन पाँसों की चमक को और भी अधिक बढ़ाता हुआ, हाव-भावपूर्वक, वह उन्हें उछालने लगा। यह देख कर इन्दुमती के हृदय में उसके जुवारी नहीं, तो खिलाड़ी, होने का निश्चय हो गया। अतएव इसे भी उसने अपने लिए अयोग्य समझा।

एक राजा का मुकुट, उसके सिर पर, जहाँ चाहिए था वहीं ठीक

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