पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१२६

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रघुवंश।

रक्खा हुआ था। परन्तु उसने यह सूचित सा करना चाहा कि वह अपनी जगह पर नहीं है; कुछ खिसक गया है। इसी बहाने वह अपना एक हाथ, जिसकी उँगलियों के बीच की ख़ाली जगह रत्नों की किरणों से परिपूर्ण सी हो गई थी, बार बार अपने मुकुट पर फेरने लगा। इस व्यापार के द्वारा राजा ने तो शायद इन्दुमती से यह इशारा किया कि मैं तुझे मुकुट ही की तरह, अपने सिर पर, स्थान देने को तैयार हूँ। परन्तु इन्दुमती ने इसे भी व्यर्थ ही हाथ घुमाने फिराने वाला, अतएव कुलक्षणी, ठहराया।

इसके अनन्तर स्वयंवर का मुख्य काम प्रारम्भ हुआ। सुनन्दा नाम की एक द्वारपालिका बुलाई गई। उपस्थित राजा लोगों की वंशावली इसे ख़ूब याद थी। प्रत्येक राजा के पूर्व-पुरुषों तक का चरित यह अच्छी तरह जानती थी। बातूनी भी यह इतनी थी कि पुरुषों के कान काटती थी। उस समय मगध देश का राजा सबसे अधिक प्रतिष्ठित समझा जाता था। इससे इन्दुमती को सुनन्दा पहले उसी के सामने ले गई। वहाँ उसने समयानुकूल वक्तृता आरम्भ की। कुमारी इन्दुमती से वह कहने लगीः—

"देख, यह मगध देश का महा पराक्रमी परन्तप नामक राजा है। 'पर' शत्रु को कहते हैं। अपने शत्रुओं पर यह बेहद तपता है—उन्हें बहुत अधिक सन्ताप पहुँचाता है—इसी कारण, इसका 'परन्तप' नाम सच मुच ही सार्थक है। शरण आये हुओं की रक्षा करना, यह अपना धर्म्म समझता है—शरणाथियों को शरण देने में कभी आनाकानी नहीं करता। अपनी प्रजा को भी यह सदा सन्तुष्ट रखता है। इससे इसने संसार में बड़ा नाम पाया है। इसकी कीर्ति सर्वत्र फैली हुई है। यों तो इस जगत् में सैकड़ों नहीं, हजारों राजा हैं, परन्तु यह पृथ्वी केवल इसी को यथार्थ राजा समझती है। 'राजन्वती' नाम इसे इसी राजा की बदौलत मिला है। रात को आकाश में, न मालूम कितने, नक्षत्र, तारे और ग्रह उदित हुए देख पड़ते हैं, परन्तु उनके होते हुए भी जब तक चन्द्रमा का उदय नहीं होता तब तक कहीं चाँदनी नहीं दिखाई देती। एक मात्र चन्द्रमा ही की बदौलत रात को, 'चाँदनी वाली' संज्ञा प्राप्त हुई है। भूमण्डल के अन्यान्य राजा नक्षत्रों, तारों और ग्रहों के सदृश भले ही इधर उधर चमकते रहें; पर उन सब में अकेला परन्तप ही चन्द्रमा की बराबरी कर सकता है। इस राजा को यज्ञानुष्ठान से बड़ा प्रेम है। एक न एक यज्ञ इसके यहाँ सदा हुआ ही करता है, और, इन यज्ञों में अपना भाग लेने के लिए यह इन्द्र को सदा बुलाया ही करता है। इस कारण बेचारी इन्द्राणी को चिरकाल तक पति-वियोग की व्यथा सहन करनी पड़ती है। उसका मुँह पीला पड़ जाता है, बालों में मन्दार के फूलों का गूँथा जाना बन्द हो जाता