पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१३४

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रघुवंश।

इन्द्र को जीतने के लिए, स्वर्ग पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगा, उस समय उसे यह डर हुआ कि ऐसा न हो जो मेरी ग़ैरहाजिरी में पाण्ड्यनरेश दण्डकारण्य का तहस नहस करके, वहाँ रहनेवाली मेरी राक्षसप्रजा का बिलकुल ही सर्वनाश कर डाले। अतएव पाण्ड्यनरेश से सन्धि करके उसे अपना मित्र बना कर तब रावण ने अमरावती पर चढ़ाई की। इसके पहले उसे अपनी राजधानी से हटने का साहस ही न हुआ। यह राजा दक्षिण दिशा का स्वामी है, और, इस दिशा को रत्नों से परिपूर्ण समुद्र ने चारों तरफ़ से घेर रक्खा है। इससे वह दक्षिण दिशा की कमर में पड़े हुए कमरपट्टे के समान मालूम होता है। मेरी सम्मति है कि इस महाकुलीन राजा के साथ विधिपूर्वक विवाह करके, गरुई पृथ्वी की तरह, तू भी दक्षिण दिशा की सौत बनने का सौभाग्य प्राप्त कर। मलयाचल की सारी भूमि एक मात्र इसी राजा के अधिकार में है। यह भूमि इतनी रमणीय है कि मुझसे इसकी प्रशंसा नहीं हो सकती। वह देखने ही लायक है। सुपारी के पेड़ों पर पान की बेलें वहाँ इतनी घनी छाई हुई हैं कि उन्होंने पेड़ों को बिलकुल ही छिपा दिया है। चन्दन के पेड़ों से वहाँ इलायची की लतायें इस तरह लिपटी हुई हैं कि वे उनसे किसी तरह अलग ही नहीं की जा सकतीं। तमाल के पत्ते, सब कहीं, वहाँ इस तरह फैले हुए हैं जैसे किसी ने हरे हरे कालीन बिछा दिये हों। तू इस राजा के गले में जयमाल डाल कर, मलयाचल के ऐसे शोभामय और सुखदायक केलिकानन में, नित नया विहार किया कर। मेरी बात मान ले। अब देरी मत कर। प्रसन्नतापूर्वक इसे माला पहना दे। इस राजा के शरीर की कान्ति नीले कमल के समान साँवली है, और तेरे शरीर की कान्ति गो-रोचना के समान गोरी। इस कारण, भगवान् करे, तुम दोनों का सम्बन्ध काले मेघ और चमकती हुई गोरी बिजली के समान एक दूसरे की शोभा को बढ़ावे"!

इस प्रकार सुनन्दा ने यद्यपि बहुत कुछ लोभ दिखाया और बहुत कुछ समझाया बुझाया, तथापि उसकी सीख को राजा भोज की बहन के हृदय के भीतर घुसने के लिए तिल भर भी जगह न मिली। उसका वहाँ प्रवेश ही न हो सका। इन्दुमती पर सुनन्दा की विकालत का कुछ भी असर न हुआ। सूर्य्यास्त होने पर, जिस समय कमल का फूल अपनी पँखुड़ियों को समेट कर बन्द हो जाता है उस समय, हज़ार प्रयत्न करने पर भी, क्या चन्द्रमा की किरण का भी प्रवेश उसके भीतर हो सकता है?

इसी तरह और भी कितने ही राजाओं को उस राजकुमारी ने देखा भाला; पर उनमें से एक भी उसे पसन्द न आया। एक एक को देखती और निराशा के समुद्र में डुबोती हुई वह आगे बढ़ती ही गई। हाथ