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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१४७

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फँस जाने के कारण मुश्किल से छूटे। इससे, बड़ी देर बाद, वे ज़मीन पर धड़ाधड़ गिरे।

अब ज़रा घुड़सवारों के युद्ध की भी एक आध बात सुन लीजिए। एक ने यदि दूसरे पर प्रहार किया और वह मूर्छित होकर, घोड़े की गरदन पर सिर रख कर, रह गया—उसे अपने ऊपर वार करनेवाले पर हाथ उठाने का मौक़ाही न मिला—तो दुबारा प्रहार करने के लिए पहला तब तक ठहरा रहा जब तक दूसरे की मूर्च्छा न गई। मूर्च्छित अवस्था में शत्रु पर वार करना उसने अन्याय समझा। युद्ध में योद्धाओं ने धर्म्माधर्म्म का इतना ख़याल रक्खा।

कवच धारण किये हुए योद्धाओं ने, मृत्यु को तुच्छ समझ कर, बड़ाही भीषण युद्ध किया। अपने शरीर और प्राणों को उन्होंने कुछ भी न समझा। म्यान से तलवारें निकाल कर हाथियों के लम्बे लम्बे दाँतों पर, वे तडातड़ मारने लगे। इस कारण उनसे चिनगारियाँ निकलने लगीं। इस पर हाथी बेतरह भयभीत हो उठे और सूँड़ों में भरे हुए पानी के कण बरसा कर किसी तरह उस आग को वे बुझा सके।

लड़ाई के मैदान ने, क्रम क्रम से, इतना भीषण और विकराल रूप धारण किया कि वह मृत्यु की पानभूमि, अर्थात् शराबख़ाने, की समता को पहुँच गया। पानभूमि में मद्य की नदियाँ बहती हैं; यहाँ रुधिर की नदियाँ बह निकलीं। वहाँ मद्य पीने के लिए काँच और मिट्टी के पात्र रहते हैं, यहाँ योद्धाओं के सिर से गिरे हुए लोहे के टोपों ने पानपात्रों का काम दिया। वहाँ शराबियों की चाट के लिए फल रक्खे रहते हैं; यहाँ बाणों से काट गिराये गये हज़ारों सिर ही स्वादिष्ठ फल हो गये।

किसी सैनिक की कटी हुई भुजा को मांसभोजी पक्षी खाने लगे। उसके दोनों सिरों से नोच नोच कर बहुत सा मांस वे खा भी गये। इतने में एक स्यारनी ने उसे देख पाया। वह झपटी और पक्षियों से उस अधखाई भुजा को छीन लाई। उस पर, बीच में, मारे गये सैनिक का भुजबन्द ज्यों का त्यों बँधा था। इससे उसके नीचे का मांस पक्षियों के खाने से बच रहा था। स्यारनी ने जो दाँत उस पर मारे तो भुजबन्द की नोकों से उसका तालू छिद गया। अतएव, यद्यपि मांस उसे बहुतही प्यारा था, तथापि, लाचार होकर, उसे वह बाहु-खण्ड छोड़ही देना पड़ा।

शत्रु के खड्गाघात से एक वीर का सिर कट कर ज्योंही ज़मीन पर गिरा त्योंही युद्ध में लड़ कर मरने के पुण्यप्रभाव से, वह देवता हो गया। साथही एक देवाङ्गना भी उसे प्राप्त हो गई और तत्काल ही वह उसकी बाईं तरफ़ विमान पर बैठ भी गई। इधर यह सब हुआ