पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१६३

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आठवाँ सर्ग।

तुझ से ही अनुराग रखने वाला यह तेरा प्रेमी मैं हूँ। तिस पर भी इन सारे प्रेम-बन्धनों को तोड़ कर तू ने यहाँ से प्रस्थान कर दिया! निष्ठुरता की हद हो गई।

"मेरा सारा धीरज छूट गया। मेरे सांसारिक सुखों ने जवाब दे दिया। मेरा गाना-बजाना बन्द हुआ। ऋतु-सम्बन्धी मेरे उत्सव समाप्त हो चुके। वस्त्राभूषणों की आवश्यकता जाती रही। घर मेरा सूना हो गया। हाय! हाय! मेरी इस दुःख-परम्परा का कहीं ठिकाना है! मैं किस किस बात को सोचूँ? मेरे घर की तू स्वामिनी थी। सलाह करने की आवश्यकता होने पर मेरी तू सलाहकार थी। एकान्त में मेरी तू सखी थी। और, सङ्गीत आदि ललित कलाओं में मेरी तू प्यारी विद्यार्थिनी थी। निर्दया मृत्यु ने, तेरा नाश करके, मेरे सर्वस्व ही का नाश कर दिया। अब मेरे पास रह क्या गया? उसने तो सभी ले लिया, कुछ भी न छोड़ा। हे मतवाले नेत्रों वाली! मेरे मद्य पी चुकने पर, बचे हुए रसीले मद का स्वाद तुझे बहुत ही अच्छा लगता था। इसी से तू सदा मेरे पीछे मद्यपान किया करती थी। हाय! हाय! वही तू, अब, मेरे आँसुओं से दूषित हुई मेरी जलाञ्जली को, जो तुझे परलोक में मिलेगी, किस तरह पी सकेगी? इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेरे लिए अनेक प्रकार के वैभव और ऐश्वर्य्य सुलभ हैं। परन्तु तेरे बिना वे मेरे किसी काम के नहीं। अज को जो सुख मिलना था मिल चुका। उसकी अवधि आज ही तक थी। संसार में जितने प्रलोभनीय पदार्थ और सुखोपभोग के सामान हैं उनकी तरफ मेरा चित्त नहीं खिंचता। मेरा सारा सांसारिक भोग-विलास एक मात्र तेरे आसरे था। तेरे साथ ही वह भी चला गया।"

अपनी प्रियतमा के मरने पर, कोसलेश्वर अज ने, इस प्रकार, घन्टों, बड़ाही कारुणिक विलाप किया। उसका रोना-बिलखना सुन कर मनुष्य ही नहीं, पेड़-पौधे तक रो उठे। डालों से टपकते हुए रसरूपी आँसू बरसवा कर अज ने पेड़ों को भी रुला दिया। उसके दुख से दुखी होकर, रस टपकाने के बहाने, पेड़ भी बड़े बड़े आँसू गिराने लगे।

बहुत देर बाद, अज के बन्धु बान्धवों ने इन्दुमती के शव को अज की गोद से अलग कर पाया। तदनन्तर, उन्होंने इन्दुमती का शृङ्गार किया, जैसा कि मरने पर सौभाग्य स्त्रियों का किया जाता है। फिर उन्होंने उस मृत शरीर को अगर और चन्दन आदि से रची गई चिता पर रख कर उसे अग्नि के हवाले कर दिया। इन्दुमती पर अज का इतना प्रेम था कि वह भी उसी के साथ ही जल जाता। परन्तु उसने सोचा कि यदि मैं ऐसा करूँगा