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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१६६

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रघुवंश।

वह बेचारी विवश थी। इस कारण रानी के मरने की चिन्ता अब आप और न करें। जन्मधारियों को एक न एक दिन अवश्यही मरना पड़ता है—'जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः'। ऐसा कौन है जिसे जन्म लेकर विपत्तिग्रस्त न न होना पड़ा हो? विपत्तियाँ तो मनुष्य के सामने सदाही खड़ी रहती हैं। अब आप इस पृथ्वी की तरफ़ देखें। आपको अब इसी का पालन करना चाहिए। क्योंकि पृथ्वी भी तो आपकी स्त्री है। अथवा यों कहना चाहिए कि पृथ्वी से ही राजा लोग कलत्रवान् हैं। वे पृथ्वी के पति कहलाते हैं न? इतना ऐश्वर्य्य और वैभव पाकर भी आप कभी राजमद से मत्त नहीं हुए, कभी आपने कोई काम ऐसा नहीं किया जिससे आपकी निन्दा हो। आपने अपने आत्मज्ञान की बदौलत जो कुछ किया सभी शास्त्र-सम्मत किया। आपके शास्त्रज्ञान की सदा ही प्रशंसा हुई है। अब, दुर्दैववश, आप पर आपत्ति आई है। इस कारण आपके चित्त में विकार उत्पन्न हो गया है। इस विकार को भी आप अपने आत्मज्ञान की सहायता से दूर कर दीजिए। जिस तरह सम्पत्ति-काल में आप स्थिर रहे—कभी चञ्चल नहीं हुए—उसी तरह विपत्ति-काल में भी दृढ़तापूर्वक अचल रहिए। घबराइए नहीं। शास्त्रज्ञों और तत्त्वज्ञानियों का काम घबराना नहीं।

"रोने से भला क्या लाभ? रोना तो दूर रहा, यदि आप इन्दुमती का अनुगमन भी करेंगे—यदि उसके पीछे आप भी मर जायँगे—तो भी वह न मिल सकेगी। जितने शरीरधारी हैं, परलोक जाने पर, सब की गति, अपने अपने कर्मों के अनुसार, जुदा जुदा होती है। जो जैसा कर्म्म करता है उसकी वैसी ही गति भी होती है। जिस रास्ते एक को जाना पड़ता है उस रास्ते दूसरे को नहीं—सब का पथ जुदा जुदा है। इससे अब आप व्यर्थ शोक न कीजिए। जलाञ्जलि और पिण्डदान आदि से आप अपनी कुटुम्बिनी का उपकार कीजिए। यदि आपके द्वारा उसे कुछ लाभ पहुँच सकता है तो इसी तरह पहुँच सकता है, और किसी तरह नहीं। लोग इस बात को विश्वासपूर्वक कहते हैं कि कुटुम्बियों और बन्धु-बान्धवों के बार बार रोने से प्रेत को कुछ लाभ तो पहुँचता नहीं उलटा उसे दुःख होता है। देह धारण कर के ज़रूर ही मरना पड़ता है। मरना तो प्राणियों का स्वभाव ही है। जिसे लोग जीना कहते हैं वह तो एक प्रकार का विकार है। जितने बुद्धिमान् और विद्वान् हैं वे मरने को स्वाभाविक और जीने को अस्वाभाविक समझते हैं। इस दशा में जो जीवधारी क्षण भर भी साँस ले सकें—क्षण भर भी जीते रह सकें—उन्हें इतने ही को बहुत समझना चाहिए। उनके लिए यही क्या कम है? यह थोड़ा लाभ नहीं? जब अपना कोई प्रेमपात्र मर जाता है तब मूढ़ मनुष्यों को ऐसा मालूम