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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१७९

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नवाँ सर्ग।

हुई हरिनियाँ भी थीं। वे सब चरने में लगी थीं। उनके बच्चे बार बार उनके थनों में मुँह लगा लगा कर उनके चलने-फिरने और चरने में विघ्न डाल रहे थे। हरिनियों को चरने की धुन थी, बच्चों को दूध पीने की। इस झुण्ड को देखते ही राजा ने अपने तेज़ घोड़े को उसकी तरफ़ बढ़ाया और तूणीर से बाण खींच कर धन्वा पर रक्खा। घोड़े पर उसे अपनी तरफ़ आते देख हिरनों में हाहाकार मच गया। वे जो पाँत बाँधे चर रहे थे वह पाँत उनकी टूट गई। जिसे जिस तरफ़ जगह मिली वह उसी तरफ़ व्याकुल होकर भागा। उस समय आँसुओं से भीगी हुई उनकी भयभीत दृष्टियों ने—मानों पवन के झकोरे हुए नील कमल की पँखुड़ियों ने—उस सारे वन को श्यामतामय कर दिया।

इन्द्र के समान पराक्रमी दशरथ ने उन भागते हुए हिरनों में से एक पर शर-सन्धान किया। उस हिरन की हिरनी भी उस समय उसके साथ ही थी। हिरनी ने देखा कि राजा मेरे पति को अपने बाण का निशाना बनाना चाहता है। अतएव वह वहीं खड़ी हो गई और हिरन को अपनी आड़ में कर लिया। उसने मानों कहा—"मैं अपने पति की सहचरी हूँ। विधवा होकर मैं अकेली जीना नहीं चाहती। इससे पहले मुझे मार डाल"। यह अलौकिक दृश्य देख कर उस धनुषधारी का हृदय दया से आर्द्र हो पाया। बात यह थी कि वह स्वयं भी आदर्शप्रेमी था और प्रेम की महिमा अच्छी तरह जानता था। अतएव, उसने ऐसे प्रेमी जोड़े को मारना मुनासिब न समझा। फल यह हुआ कि कान तक खींचे गये बाण को भी उसने धनुष से उतार लिया। दूसरे हिरनों पर बाण छोड़ने की इच्छा रहते भी, उसकी कड़ी से भी कड़ी मुट्ठी ढीली होगई—कान तक जा जाकर भी उसका हाथ पीछे लौट लौट आया। भयभीत हुई हिरनियों की आँखें देखते ही उसे अपनी प्रोढ़ा रानियों के कटाक्षों का स्मरण हो आया। इस कारण, प्रयत्न करने पर भी, उसके हाथ से बाण न छूटा।

तब उसने सुवर मारने का विचार किया। उस समय वे कुण्डों के भीतर मोथ नामक घास खोद खोद कर खा रहे थे। ज्योंही उन्होंने राजा के आने की आहट पाई त्योंही तत्काल वे कीचड़ से निकल भागे। भागते समय उनके मुँहों से माथे के तिनके गिरते चले गये और उनके भीगे हुए खुरों के चिह्न भी मार्ग में साफ़ साफ़ बनते गये। माथे के इन अङ्कुरों और पैरों के इन चिह्नों से राजा को मालूम हो गया कि इसी रास्ते सुवर भागे हैं। बस, फिर क्या था, तुरन्त ही उसने उनका पीछा किया। वह कुछ ही दूर आगे गया होगा कि भागते हुए सुवर उसे दिखाई दिये। घोड़े पर बैठे हुए राजा ने, अपने शरीर के अगले भाग को कुछ झुका कर, धनुष पर बाण