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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१८६

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रघुवंश।

अपनी कार्य्य-सिद्धि का सूचक समझा। क्योंकि, देर न होना भी भावी कार्य्य-सिद्धि का चिह्न है। काम जब सफल होने को होता है तब न तो विलम्ब ही होता है और न कोई विघ्न ही आता है।

देवताओं ने जाकर देखा कि शेष के शरीररूपी आसन पर भगवान् बैठे हैं और शेष के फणमण्डल की मणियों के प्रकाश से उनके सारे अङ्ग प्रकाशमान हो रहे हैं। लक्ष्मी जी, कमल पर आसन लगाये, उनकी सेवा कर रही हैं। भगवान् के चरण उनकी गोद में हैं। लक्ष्मीजी मेखला पहने हुए हैं। परन्तु इस डर से कि कहीं भगवान् के पैरों में उसके दाने गड़ न जायँ, उन्होंने उसके ऊपर अपनी रेशमी साड़ी का छोर डाल रक्खा है। इससे भी सन्तुष्ट न होकर साड़ी के ऊपर उन्होंने अपने कररूपी पल्लव बिछा दिये है। उन्हीं पर भगवान् के पैर रख कर उन्हें वे धीरे धीरे दाब रही हैं। भगवान् के नेत्र खिले हुए कमल के समान सुन्दर हैं। उनका पीताम्बर बाल-सूर्य्य की धूप की तरह चमक रहा है। उनका दर्शन योगियों को बहुत ही सुखदायक है। इन गुणों के कारण वे शरत्काल के दिन की तरह शोभायमान हो रहे हैं। वह दिन—जिसके नेत्र खिले हुए कमल हैं, जिसका बस्त्र सूर्य्य का प्रातःकालीन घाम है, जिसका दर्शन पहले पहल बहुत ही सुखकारक होता है। देवताओं ने देखा कि भगवान् अपनी चौड़ी छाती पर महासागर की सारभूत, और, सिँगार करते समय लक्ष्मीजी के लिए आइने का काम देने वाली, कौस्तुभ-मणि धारण किये हुए हैं। उसकी कान्ति से भृगुलता (भृगु के लात के चिह्न), अर्थात् श्रीवत्स, की शोभा और भी अधिक हो रही है। बड़ी बड़ी शाखाओं के समान भगवान् की लम्बी लम्बी भुजायें दिव्य आभूषणों से आभूषित हैं। उन्हें देख कर मालूम होता है, जैसे समुद्र के भीतर भगवान्, दूसरे पारिजात वृक्ष की तरह, प्रकट हुए हैं। मदिरा पीने से उत्पन्न हुई लाली को दैत्यों की स्त्रियों के कपोलों से दूर करने वाले, अर्थात् उनके पतियों को मार कर उन्हें विधवा बनाने वाले, भगवान् के सजीव शस्त्रास्त्र उनका जय-जयकार कर रहे हैं। गरुड़ जी नम्रता-पूर्वक हाथ जोड़े हुए उनके सामने, उनकी सेवा करने के लिए, खड़े हैं। अमृत हरे जाने के समय लगे हुए वज्र के घावों के चिह्न, गरुड़जी के शरीर पर, स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। भगवान् की शय्या का काम देने वाले शेष के सम्बन्ध में उन्होंने विरोध-भाव छोड़ दिया है। भगवान् की योग-निद्रा खुल जाने से, भृगु आदि महर्षि, उनके सामने उपस्थित होकर, उनसे पूछ रहे हैं:—"महाराज! आप सुख से तो सोये?" और, भगवान् अपनी पवित्र दृष्टि से उनकी तरफ़ देख देख कर उन पर अपना अनुग्रह प्रकट कर रहे हैं।