पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२०७

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ग्यारहवाँ सर्ग।


"क्षत्रियों ने मेरा बड़ा अपकार किया है। इस कारण वे मेरे वैरी हैं। इसी से, एक नहीं, अनेक बार उनका नाश करके मैं अपने क्रोध को शान्त कर चुका हूँ। परन्तु छड़ी से छेड़े जाने पर सोये हुए साँप के समान तेरे पराक्रम का वृत्तान्त सुन कर मुझे फिर कोप हो आया है। मैं ने सुना है कि मिथिलानरेश जनक का जो धनुष और किसी राजा से झुकाया नहीं झुका उसी को तूने तोड़ डाला है। जो बात अब तक और किसी से न हुई थी उसे तूने कर दिखाया है। इस कारण मुझे ऐसा मालूम हो रहा है जैसे तूने मेरे पराक्रम का सींग तोड़ दिया हो। इस बात को मैं अपने अपमान का कारण समझता हूँ। तेरी यह उद्दण्डता मुझे बहुत ही खटकी है। अब तक 'राम' शब्द से एक मात्र मेरा ही बोध होता था। यदि, इस लोक में, कोई 'राम' कहता था तो उसके मुँह से यह शब्द निकलतेही लोग समझ जाते थे कि कहने वाले का मतलब मुझसेही है। परन्तु अब यह बात नहीं रही। अब तो इस शब्द का प्रयोग दो जगह बँट गया। अब तो इससे तेरा भी बोध होने लगा है। तेरी महिमा भी दिन पर दिन बढ़ रही है। यह मेरे लिए लज्जा की बात है। यह मैं नहीं सहन कर सकता। मेरे अस्त्र का हाल तुझे मालूम है या नहीं? प्राणियों की तो बातही नहीं, पर्वतों तक को काट गिराने की उसमें शक्ति है। ऐसा अमोघ अस्त्र धारण करनेवाला मैं, इस संसार में, दो को ही अपना शत्रु समझता हूँ, और, उन दोनों के अपराध की मात्रा भी, मेरी दृष्टि में, बराबर है। एक तो पिता की होम-धेनु का बछड़ा हर ले जाने के कारण हैहयवंशी कार्त्तवीर्य्य मेरा शत्रु है; और, दूसरा, मेरी कीर्त्ति का लोप करने की चेष्टा करने के कारण तू है। यद्यपि अपने प्रबल पराक्रम से मैं क्षत्रियों का नाश कर चुका हूँ तथापि जब तक मैं तुझे नहीं जीत लेता तब तक मुझे चैन नहीं—तब तक क्षत्रियवंश का विध्वंसकर्त्ता अपना अद्भुत पराक्रम भी मुझे अच्छा नहीं लगता। आग की तारीफ़ तो तब है जब वह फूस की ढेरी की तरह महासागर में भी दहकने लगे। महादेव का धनुष तोड़ने से यदि तुझ में कुछ घमण्ड आ गया हो तो यह तेरी नादानी है। भगवान् विष्णु की महिमा से वह कमज़ोर हो गया था—उनके तेज ने उसका सार खींच लिया था। यदि ऐसा न होता तो मजाल थी जो तू उसे तोड़ सकता। नदी के वेगगामी जल की टक्करों से जड़ें खुल जाने पर तट के तरुवर को हवा का हलका सा भी झोंका गिरा देता है। यह तू जानता है या नहीं?

"अच्छा, तो, अब, तू मेरे इस धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाकर उस पर बाण रख और फिर शर-सन्धान कर। युद्ध रहने दे। यदि तू यह काम कर लेगा तो मैं समझ लूँगा कि तुझमें भी उतनाही बल है जितना कि मुझ में है। यही नहीं,