पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२२३

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बारहवाँ सर्ग।


तब राक्षसों को माया रचने की सूझी। विद्यज्जिह्वा नामक राक्षस ने रामचन्द्रजी का कटा हुआ सिर सीताजी के सामने रख दिया। उसे देख कर सीता जी मूर्छित हो गईं। इस पर त्रिजटा नामक राक्षसी ने सीताजी से कहा कि यह केवल माया है। रामचन्द्रजी का बाल भी बाँका नहीं हुआ। आप घबराइए नहीं। यह सुन कर सीताजी को धीरज हुआ। त्रिजटा की बदौलत वे फिर जी सी उठीं। यह जान कर कि मेरे पति कुशल से हैं उनका शोक तो दूर हो गया; परन्तु यह सोच कर उन्हें लज्जा अवश्य हुई कि पति की मृत्यु को पहले सच मान कर भी मैं जीती रही। चाहिए था यह कि पति की मृत्युवार्त्ता सुनते ही मैं भी मर जाती।

मेघनाद ने राम-लक्ष्मण को नागपाश से बाँध दिया। परन्तु इस पाश के कारण उत्पन्न हुई व्यथा उन्हें थोड़ी ही देर तक सहनी पड़ी। गरुड़ के आते ही नागपाश ढीला पड़ गया और राम-लक्ष्मण का उससे छुटकारा हो गया। उस समय वे सोते से जाग से पड़े और नागपाश से बाँधे जाने की पीड़ा उन्हें स्वप्न में हुई सी मालूम होने लगी।

इसके अनन्तर रावण ने शक्ति नामक अस्त्र लक्ष्मण की छाती में मारा। भाई को आहत देख रामचन्द्रजी शोक से व्याकुल हो गये। बिना किसी प्रकार के चोट खाये ही उनका हृदय विदीर्ण हो गया। लक्ष्मण को अचेत देख पवनसुत हनूमान् सञ्जीवनी नामक महौषधि ले आये। उसके प्रभाव से लक्ष्मण की सारी व्यथा दूर हो गई। वे फिर भीषण युद्ध करने लगे। उन्होंने अपने तीक्ष्ण बाणों से इतने राक्षस मार गिराये कि लङ्का की स्त्रियों में हा-हाकार मच गया। वे महाकारुणिक विलाप करने लगीं। अपने बाणों की सहायता से राक्षसियों को विलाप करना सिखला कर लक्ष्मणजी विलापाचार्य्य की पदवी को पहुँच गये। शरत्काल जिस तरह मेघों की गरज और इन्द्रधनुष का सर्वनाश कर देता है—उनका नामोनिशान तक बाक़ी नहीं रखता उसी तरह लक्ष्मण ने मेघनाद के नाद और इन्द्र-धनुष के समान चमकीले उसके धनुष का अत्यल्प अंश भी बाक़ी न रक्खा। उन्होंने उसके धनुष को काट कर उसके टुकड़े टुकड़े कर डाले और स्वयं उसे भी मार कर सदा के लिए चुप कर दिया।

मेघनाद के मारे जाने पर कुम्भकर्ण लड़ाई के मैदान में आया। सुग्रीव ने उसके नाक-कान काट कर उसकी वही दशा कर डाली जो दशा उसकी बहन शूर्पणखा की हुई थी। भाई-बहन दोनों की अवस्था एक सी हो गई। नाक-कान कट जाने पर भी कुम्भकर्ण ने बड़ा पराक्रम दिखाया। टाँकी से काटे गये मैनसिल के लाल लाल पर्वत की तरह उसने रामचन्द को आगे बढ़ने से रोक दिया। तब रामचन्द्र के बाणों ने मानों उससे कहा:—"आप

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