से, वे लोग स्वर्ग को पहुँच गये। नदियों में जिस जगह गायें उतरती हैं घह जगह गोप्रतर कहलाती है। जिस समय रामचन्द्रजी के अनन्त अनुयायी तैर कर सरयू को पार करने लगे उस समय इतनी भीड़ और इतनी रगड़ा-रगड़ हुई कि गौवों के उतरनेहीं का जैसा दृश्य दिखाई देने लगा। इस कारण, तब से, उस पवित्र तीर्थ का नामही गोप्रतर हो गया।
सुग्रीव आदि तो देवताओं के अंश थे। इससे, स्वर्ग पहुँचने पर, जब उन्हें उनका असली रूप मिल गया तब रामचन्द्रजी ने देव-भाव को पाये हुए अपने पुरवासियों के लिए एक जुदेही स्वर्ग की रचना कर दी। उनके लिए एक स्वर्ग अलगही बनाया गया।
देवताओं का रावणवधरूपी कार्य्य करनेहीं के लिए भगवान् ने रामचन्द्रजी का अवतार लिया था। अतएव, जब वह कार्य्य सम्पन्न हो गया तब विभीषण को दक्षिणी और हनूमान् को उत्तरी पर्वत पर, अपनी कीर्त्ति के दो स्तम्भों के समान, संस्थापित करके, विष्णु के अवतार रामचन्द्रजी, सारे लोकों की आधार-भूत अपनी स्वाभाविकी मूर्त्ति में, लीन हो गये।