पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२८१

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सोलहवाँ सर्ग।


कामिनियों के कमनीय कपोलों पर बेहद पसीना निकलने लगा। इस कारण उनके कान पर रक्खा हुआ सिरस का फूल यद्यपि कान से गिर पड़ा तथापि उसके केसर, पसीना निकले हुए कपोल पर, ऐसे चिपक गये कि बड़ी देर में वह वहाँ से छूट कर ज़मीन पर पहुँच सका। जब गरमी बहुत पड़ने लगी तब, दोपहर की लू से बचने के लिए, अमीर ऐसे मकानों में रहने लगे जिनमें जल के फ़ौवारे चल रहे थे। वहाँ पर चन्दन छिड़की हुई और पिचकारी आदि यन्त्रों के द्वारा जल-धारा से भिगाई हुई पत्थर की बहुमूल्य शिलाओं पर सोकर, उन्होंने, किसी तरह, गरमी से अपनी जान बचाई। स्नान करके स्त्रियाँ अपने गीले केस, सुगन्धित चूर्ण आदि उनमें लगाने और सायङ्काल खिलने वाली चमेली के फूल गूँथने के लिए, खुले ही छोड़ देने लगीं। ऐसे केशों को देख कर उनके पतियों का प्रेम उन पर पहले की भी अपेक्षा अधिक हो गया।

इस ऋतु में अर्जुन नामक वृक्ष की मञ्जरी बहुत ही शोभायमान हुई। पराग के कणों से परिपूर्ण हो जाने के कारण उसमें एक प्रकार की लालिमा आ गई। उसे देख कर ऐसा मालूम होने लगा जैसे रतिपति को भस्म करने पर भी महादेवजी का क्रोध शान्त न हुआ हो। अतएव उन्होंने काम के धनुष की प्रत्यञ्चा भी तोड़ डाली हो और यह वही टूटी हुई प्रत्यञ्चा हो, अर्जुन की मञ्जरी नहीं।

इस ऋतु में रसिक जनों को अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। परन्तु ग्रीष्म ने मनोहारी सुवास से परिपूर्ण आम की मञ्जरी, पुरानी मदिरा और पाटल के नये फूलों की प्राप्ति कराकर उन सारे कष्टों का प्रतीकार कर दिया। इन पदार्थों के सेवन से होने वाले सुख ने ग्रीष्म-सम्बन्धी अन्य सारे दुःखों का विस्मरण करा दिया।

इस महासन्तापकारी समय में, उदय को प्राप्त हुआ वह राजा और चन्द्रमा, ये दोनों ही प्रजा के बहुतही प्यारे हुए। राजा तो इस लिए कि वह अपनी पादसेवा से प्रजाजनों के दुःख और दरिद्र आदि से सम्बन्ध रखने वाला सारा ताप दूर करनेवाला था। और, चन्द्रमा इसलिए कि वह अपनी पाद-सेवा (किरण-स्पर्श) से उन लोगों का उष्णता-सम्बन्धी सारा ताप नाश करनेवाला था।

ग्रीष्म की गरमी से तङ्ग पाकर राजा कुश की इच्छा हुई कि रनिवास को साथ लेकर सरयू में जलविहार करना चाहिए। सरयू में स्नान करना, उस समय, सचमुचही अत्यन्त सुखदायक था। उसके तीर पर जो लतायें थीं उनसे गिरे हुए फूल उसमें बह रहे थे और लहरों के लोभी मत्त राजहंस उसमें कलोलें कर रहे थे। जल-विहार का निश्चय करके पहले तो