पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२८२

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रघुवंश।

चक्रधारी भगवान् विष्णु के समान प्रभाववाले राजा कुश ने जाल डलवा कर सरयू के सारे मगर और घड़ियाल निकलवा डाले। फिर उसके तीर पर सैकड़ों तम्बू उसने तनवा दिये। तदनन्तर उसने अपनी प्रभुता और महिमा के अनुसार, राजसी ठाठ से, उसमें विहार करना आरम्भ कर दिया।

राजा कुश के रनिवास की स्त्रियाँ किनारे पर लगे हुए पट-मण्डपों से एकही साथ निकल पड़ीं और पैरों में पहने हुए नूपुरों का शब्द करती हुई नदी की सीढ़ियों से नीचे उतरने लगीं। उस समय वे इस तरह पास पास भिड़ कर उतरीं कि एक दूसरी के भुजबन्द, परस्पर रगड़ गये। जहाँ वे जल में कूद कर मनमाना विहार करने लगीं वहाँ नदी के भीतर कलोलें करने वाले हंस भयभीत होकर भाग गये।

स्त्रियों में परस्पर छीटों की मार होने लगी। यह देख कर राजा का जी ललचा उठा। उसने अपने लिए एक नाव मँगाई। उसी पर बैठ कर वह उन स्त्रियों के नहाने का तमाशा देखने लगा। उस समय उसके पास खड़ी हुई एक किरात-कान्ता उस पर चमर कर रही थी। मौज में आकर राजा उससे इस प्रकार कहने लगा:—

"देख, मेरे रनिवास की सैकड़ों स्त्रियाँ किस तरह प्रमोदमत्त होकर विहार कर रही हैं। उनके अङ्गों पर लगे हुए सुगन्धित पदार्थ—चन्दन, कस्तूरी आदि—छूट कर लहरों के साथ बहते चले जा रहे हैं। उनके मिश्रण से सरयू का जल—लाल, पीले बादल बिखरे हुए सन्ध्या-समय के सदृश—रङ-बिरङ्गी शोभा दिखा रहा है। नावों के हिलाये हुए सरयू के सलिल ने मेरे अन्तःपुर की सुन्दरी नारियों की आँखों के जिस अञ्जन को धो डाला था उसी को उसने फिर उन्हें लौटा सा दिया है। इनकी आँखों में यौवन के मद से छाई हुई लालिमा की शोभा को सरयू के कम्पमान जल ने जो बढ़ा दिया है उससे यही मालूम होता है कि उसने उनका अञ्जन फिर उन्हीं को दे दिया और कह दिया—लो तुम्हारा अञ्जन तुम्हीं को मुबारक रहे; मुझे न चाहिए। पानी और अञ्जन का साथ कितने दिन तक रह सकता है?

इन लोगों के शरीर के कुछ अवयव बहुत भारी हैं। उनके भारीपन के कारण, तैरते समय, ये आसानी से आगे नहीं बढ़ सकतीं। फिर भी, जल में खेल-कूद का इन्हें इतना चाव है कि दुःख सह कर भी ये गाहे भुजबन्द बँधी हुई अपनी बाहों से तैर रही हैं। वारि-विहार करते समय इन लोगों के सिरस फूल के गहने इनके कानों से गिर गये हैं। उन्हें नदी की धारा में बहते देख मछलियों को बड़ा धोखा होता है।