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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२८५

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सोलहवाँ सर्ग।

ही हुक्म दिया कि खोये हुए आभूषण को ढूँढ़ निकालो। राजाज्ञा पाकर उन लोगों ने रत्ती रत्ती सरयू ढूँढ़ डाली। पर उनका सारा श्रम व्यर्थ गया। वह आभूषण न मिला। तब, लाचार होकर, वे राजा के पास गये और अपनी विफलता का हाल कह सुनाया। परन्तु कहते समय उन लोगों ने अपने चेहरों पर उदासीनता या भय का कोई चिह्न न प्रकट किया। वे बोले:—

"महाराज! जहाँ तक हम से हो सका हमने ढूँढ़ा। यत्न करने में हम लोगों ने कोई कसर नहीं की। परन्तु जल में खोया हुआ आपका वह सर्वोत्तम आभरण न मिला। हमें तो ऐसा जान पड़ता है कि सरयू-कुण्ड के भीतर रहने वाला कुमुद नामक नाग, लोभ में आकर, उसे ले गया है और वह उसी के पास है। उसके पास न होता तो वह ज़रूर ही हम लोगों को मिल जाता"।

यह सुन कर प्रबल पराक्रमी कुश जल-भुन गया। क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गईं। उसने तुरन्त ही धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी और नदी के तट पर जाकर नागराज कुमुद को मारने के लिए तरकस से गरुड़ास्त्र निकाला। उस अस्त्र के धनुष पर रखे जाते ही कुण्ड के भीतर खलबली मच गई। मारे डर के वह क्षुब्ध हो उठा और तरङ्गरूपी हाथ जोड़ कर, तट को गिराता हुआ:—गड्‌ढे में गिरे हुए जङ्गली हाथी की तरह—बड़े ज़ोर से शब्द करने लगा। उसके भीतर मगर आदि जितने जलचर थे सब बेतरह भयभीत हो गये। तब कुमुद ने अपनी ख़ैर न समझी। कुश के बाण सन्धान करते ही उसके होश ठिकाने आगये। अतएव, वह उस कुण्ड से—मथे जाते हुए समुद्र से लक्ष्मी को लिये पारिजाल-वृक्ष की तरह—अपनी बहन को आगे किये हुए सहसा बाहर निकल आया। कुश ने देखा कि खोये हुए आभूषण को नज़र करने के लिए हाथ में लिये हुए वह नाग सामने खड़ा है। तब उसने गरुड़ास्त्र को धनुष से उतार लिया। बात यह है कि सज्जनों का कोप, नम्रता दिखाने पर, शीघ्रही शान्त हो जाता है।

कुमुद भी अस्त्र-विद्या में निपुण था। वह जानता था कि गरुड़ास्त्र कैसा भीषण अस्त्र है। अपने प्रबल प्रभाव से शत्रुओं का अङ्कुश बन कर, उन्हें अपने अधीन रखनेवाले कुश के प्रचण्ड पराक्रम से भी वह अनभिज्ञ न था। यह बात भी उससे छिपी न थी कि कुश त्रिलोकीनाथ रामचन्द्र का पुत्र है। अतएव, मान और प्रतिष्ठा से उन्नत हुए भी अपने सिर को उसने मूर्द्धाभिषिक्त महाराज कुश के सामने अवनत करने ही में अपनी कुशल समझी। कुण्ड से निकलते ही उसने सिर झुका कर कुश को प्रणाम किया और कहा:—