साथ खेलना लिखा है। संन्यास और गृहस्थाश्रम का मेल, कालिदास से अच्छा और शायद ही किसी ने दिखाया है।
संन्यासियों की कुटी के आधार पर कालिदास ने गृहस्थ का घर बनाया है। उन्होंने दाम्पत्य-प्रेम को विषय के पञ्जे में जाने से बचाया है और उसे संन्यासोचित ऊँचा आसन दिया है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध कठिन नियमों से जकड़ा हुआ है। कालिदास ने उस बन्धन के सम्बन्ध को सौन्दर्य के तत्त्व से भी सही सिद्ध किया है। कालिदास ने नम्रता, धर्म और माधुर्य मिले हुए सौन्दर्य को ही पूज्य माना है, केवल बाहरी सौन्दर्य को नहीं। कालिदास का सौन्दर्य्य घनिष्ठता में एकाङ्गी, किन्तु व्यापकता में सारे संसार को अपनी गोद में लिये हुए है। जैसे द्रुतप्रवाहा नदी समुद्र में मिल कर अखण्ड शान्ति-लाभ करती है, वैसे ही स्त्री-पुरुषों का प्रेम सौन्दर्य्य की गोद में पहुँच कर असीम शान्ति-सुख पाता है। ऐसा निग्रह-युक्त प्रेम निग्रहहीन प्रेम से उत्तम ही नहीं होता, किन्तु आश्चर्यकारक भी होता है।
रवीन्द्र बाबू की सम्मति के इस अल्पांश से यह अच्छी तरह मालूम हो जायगा कि अभिज्ञानशाकुन्तल कैसा नाटक है और उससे क्या शिक्षा मिलती है।
कालिदास का रघुवंश।
कालिदास के ग्रन्थों में रघुवंश सर्वश्रेष्ठ है। उसकी सर्वोत्तमता का कारण यह है कि उसमें महाकवि ने नैसर्गिक वर्णन का सबसे अच्छा चित्र उतारा है। और, सृष्टि-चातुर्य्य का सूक्ष्म और सच्चा ज्ञान होना ही कवि का सब से बड़ा गुण है। इस गुण के सम्बन्ध में श्रीयुत राजेन्द्रनाथ-देव शर्म्मा ने अपने "कालिदास" नामक ग्रन्थ में बहुत कुछ लिखा है। उसका आशय नीचे दिया जाता है:—
कवि का प्रधान गुण सृष्टिनैपुण्य है। सुन्दर सुन्दर चरित्रों की सृष्टि और उस चरित्रावली का देश, काल और अवस्था के अनुसार काव्य में समावेश करना ही कवि का सर्वश्रेष्ठ कौशल है। यह कौशल जिसमें नहीं उसमें अन्य गुण चाहे जितने हों उसकी रचना उत्कृष्ट नहीं हो सकती। सृष्टिवर्णन स्वभावानुरूप होने से मनोरम होता है; स्वभाव-प्रतिकूल होने से विरक्तिजनक हो जाता है। इसी से आरव्योपन्यास की अधिकांश घटनायें सहृदय-सम्मत नहीं। स्वभाव के अनुसार जो व्यापार होते हैं, कवि की सृष्टि में तदनुयायी व्यापारों ही का होना उचित है।