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रघुवंश।

रानी सुदक्षिणा की शैया के आस पास, आधी रात के समय, कितने ही दीपक जल, रहे थे। शुभ लग्न में उत्पन्न हुए उस नवजात शिशु के चारों तरफ़ फैले हुए तेज ने उन सब की प्रभा को सहसा मन्द कर दिया। वे केवल चित्र में लिखे हुए दीपों के सदृश निष्प्रभ दिखाई देने लगे।

शिशु के भूमिष्ठ होने पर, रनिवास के सेवकों ने कुमार के जन्म का समाचार जा कर राजा को सुनाया। उनके मुँह से उन अमृत-तुल्य मीठे वचनों को सुन कर राजा को परमानन्द हुआ। उस समय चन्द्रमा के सदृश कान्ति वाले अपने छत्र और दोनों चमरों को छोड़ कर राजा को और कोई भी ऐसी वस्तु न देख पड़ी जिसे वह उनके लिए अदेय समझता। एक छत्र और दो चमर, इन तीन चीज़ों को उसने राजचिह्न जान कर अदेय समझा। अन्यथा वह उन्हें भी ऐसा न समझता।

नौकरों से सुत-जन्म-सम्बन्धी संवाद सुन कर राजा अन्तःपुर में गया। वहाँ निर्वात-स्थान के कमल-समान निश्चल नेत्रों से अपने नवजात सुत का सुन्दर मुख देखने वाले दिलीप का आनन्द—चन्द्रमा के दर्शन से बढ़े हुए महासागर के ओघ के समा—उसके हृदय के भीतर समा सकने में असमर्थ हो गया। उसे इतना आनन्द हुआ कि वह हृदय में न समा सका—फूट कर बाहर बह चला।

राजा ने शीघ्रही सुतात्पत्ति का समाचार महर्षि वशिष्ट के पास पहुँचाया। क्योंकि वही राजा के कुल-गुरु और पुरोहित थे। तपस्वी वशिष्ठ ने तपोवन से आकर बालक के जातकर्म्म आदि सारे संस्कार विधिपूर्वक किये। संस्कार हो चुकने पर—खान से निकलने के बाद सान पर चढ़ाये गये हीरे के समान—उस सद्योजात शिशु की शोभा और भी अधिक हो गई।

सुतोत्सव के उपलक्ष्य में, प्रमोददायक नाच और गाने के साथ साथ नाना प्रकार के माङ्गलिक बाजों की श्रुति-सुखद ध्वनि भी होने लगी। उसने राजा दिलीप के महलों ही को नहीं व्याप्त कर लिया, आकाश में भी वह व्याप्त हो हो गई—देवताओं ने भी आकाश में दुन्दुभी बजा कर आनन्द मनाया। पुत्र-जन्म आदि बड़े बड़े उत्सवों के समय राजा-महाराजा क़ैदियों को छोड़ कर हर्ष प्रकट करते हैं। परन्तु दिलीप इतनी उत्तमता से पृथ्वी की रक्षा और प्रजा का पालन करता था कि उसे कभी किसी को क़ैद करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। उसके शासनकाल में किसी ने इतना गुरुतर अपराध ही नहीं किया कि उसे क़ैद कर दण्ड देना पड़ता। अतएव उसका क़ैदख़ाना ख़ाली ही पड़ा था। उसमें एक भी क़ैदी न था। वह छोड़ता किसे? इससे, उसने पितरों के ऋण नामक बन्धन से, खुद अपने ही को छुड़ा कर क़ैदियों के छोड़े जाने की रीति निबाही! बेचारा करता क्या?