अवश्य नाश होगा; जो खड़ी है, वह अवश्य गिरैगी; जो मिले हैं, वे अवश्य बिछुड़ैगे; और जो जीते हैं, वे एक न एक दिन अवश्य मरेंगे।' यह सच है, संसार की गति पहिए की आर की भांति सदा ऊपर नीचे हुआ करती, अर्थात बदलती रहती है। इसी कारण से जो भारतवर्ष सदा से सारी पृथ्वी का मुकुटमणि बना था, जिसकी आन सारा संसार मानता था और जो विद्या, वीरता और लक्ष्मी का एकमात्र विश्रामस्थान था, वह आज दीन, हीन और मलीन होरहा है और हिन्दू राजराजेश्वरों की राजधानी [दिल्ली ] यवन-पद-दलित होरही है; उसी दिल्ली में आज खूब धूमधाम मची हुई है !!!
जिस देहली का पुराना नाम हस्तिनापुर, या इन्द्रप्रस्थ था ; जिसे राजराजेश्वर धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी राजधानी बनाया था; जहां पर तीस पीढ़ी तक युधिष्ठिर के वंशवालों ने राज्य किया था और फिर पांच सौ बरस तक जहां तक्षकवंश के लोगों का राज्य रहा; उसके बाद जहां पर गौतमवंश के पन्द्रह राजाओं ने राज किया और उनके पीछे जहां मयूरवंशवालों ने अपना पैर जमाया था; जहां पर मयूरवंश के पिछले राजा पाल को आज से दो हज़ार बरस पहिले उजयिनी के महाराजाधिराज विक्रमादित्य ने हराकर जिस [दिल्ली] को अपने आधीन किया था; पीछे तोमर वंश के दिलू या दिलीप नामक राजा ने आज से अठारह उन्नीससौ बरस पहिले जिसे अपनी राजधानी बनाया, जिससे उसका नाम 'दिल्ली' या 'देहली' पड़ा; इसके अनन्तर जो देहली सात आठ सौ बरस तक उजाड़ पड़ीरही और तोमर घराने के लोग कभी कभी उसपर अपना अधिकार जमाते रहे; फिर उनसे जिस देहली को चौहानों के प्रसिद्ध राजा विशालदेव ने [१] छीन अपनी राजधानी बनाया और फिर जो हिन्दुओं के सबसे पिछले स्वाधीन राजा- धिराज पृथ्वीराज की राजधानी हुई; उसी दिल्ली-हिन्दुओं के प्राचीन गौरव की लीलाभूमि देहली-में आज बड़ा जलूस नज़र आ रहा है !!!
(१) इस विशालदेव या वीसलदेव का नाम, फ़ीरोज़शाह की लाटपर जो शिला-लेख है, उसमें खुदा हुआ है।