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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/११

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परिच्छेद)
रङ्गमहल में हलाहल।


अन्त में जिस दिल्ली को ज़ालिम शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने छलछंद रचकर पृथ्वीराज को जीत ( सन् ११९३ ई० में ) अपने अधिकार में किया और जिसका अधिकार अपने गुलाम क तबुद्दीन ऐबक (२) को दिया था; और तब से जो दिल्ली-राजराजेश्वरों की लीलाभूमि देहली-गुलाम बादशाहों की गुलामी में दाखिल हुई, उसी दिल्ली में आज बड़ी चहल पहल, और धूम मची हुई है !!!

तो यह कैसी धूम है ? सुनिए, कहते हैं,--

सन् १२०६ ई० के अक्त बर मास में जब शहाबुद्दीन मारा गया और उसका भतीजा महमूद ग़ोरी ग़ज़नी के तख्त पर बैठा, जिसकी बहिन हमीदा का निकाह कु तबुद्दीन के साथ पहिले ही हो चुका था, उसने हिन्दुस्तान को बादशाही का खिलत और ख़िताब अपने बहनोई कु तबुद्दीन ऐवक को भेजदिया, तबसे वह कुतबुद्दीन ऐबक (३) हिन्दुस्तान का,खाधीन और पहिला मुसलमान बाद- शाह कहलाया। केवल चार बरस और कई महीने राज करके जब अस्सी बरस का होकर वह एक दिन चौगान खेलते समय घोड़े से गिर कर मर गया तो उसका बेटा आरामशाह, जो हमीदा के पेट से पैदा हुआ था, दिल्ली के तख्त पर बैठा।

यद्यपि कु तबुद्दीन के शाही हरम में बहुतसी लौडियां थीं, किन्तु निकाह की हुई केवल महमूदग़ोरी की बहिन हमीदा ही थी।


(२) ऐवक तुर्की भाषा में उसे कहते हैं। जिसके हाथ की छोटी उंगली टूटी हो।

(३) किसी धनवान ने कुतबुद्दीन ऐवक को बचपन में नैशापुर में गुलामी में मोल लिया था। फिर उसीने उसे अरबी फ़ारसी पढ़ाया। मालिक के मरने पर कु तबुद्दीन को एक सौदागर ने खरीदा और उसे शहाबुद्दीन की भेंट कर दिया । शहाबुद्दीन की उस (कु तबुद्दीन ) गुलाम पर ऐसी कृपा हुई कि होते होते वह भारतवर्ष का बादशाह हुआ। ईश्वर की महिमा का कोई पार नहीं पा सकता कि जिस कुतबुद्दीन ने लड़कपन में नैशापुर के सौदागरों की गुलामी की; वह बुढ़ापे में हिन्दुस्तान के तख्त़ पर मरा और इस देश में मुसलमानों के राज की जड़ का जमाने वाला हुआ।