पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१०४

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(तेरहवां
रज़ीयाबेगम।


याकूब, (खुश होकर ) "खुदारा, अगर इतनाही काम मेरे सुपुर्द होता है तो इसे मैं बखूबी कर सकूँगा।"

रज़ीया,-"वल्लाह ! घबराओ नहीं, जरा ठहरो । उस काम को तो, जिसका बयान मैं अभी कर गई, तुम औरों के ज़ाहिर में करोगे, मगर कुछ काम तुमको इस तौर पर भी करने पड़ेंगे जिनकी ख़बर कोई कानों कान भी न जान सकेगा। वह यह कि, जब जब मेरा दिल घबराएगा, जोहरा चुपचाप तुमको यहां लेआएगी और दो चार घड़ी तुम्हारे साथ दिल्लगी मज़ाक या चौसर शतरंग में सर्फ कीजायगी । कहने का मतलब यह कि बज़ाहिर तो तुम फ़क़त दरबारी अमीरों की हैसियत से रहोगे और यातिन में हमारा तुम्हारा बर्ताव दोस्तानः रहेगा, और सिवाय जोहरा के और किसी चौथे शख़्स के कानों तक तह बात न जाने पाएगी।"

ये बातें ऐसी थीं कि जिन्होंने याक ब के रहे सहे होश हवास एक दम से खो दिए, पर वह बेचारा कर ही क्या सकता था और उसकी बातों पर बेगम ध्यान ही कब देती थी ! लाचार, वह बेमौका समझ कर चुप होगया औराबेगम ने फिर कहा,-

"दोस्त, याक ब ! मैं समझती थी कि मेरी इन बातों से तुम इस कदर खुश होगे कि मेरा हाथ चूम लोगे, मगर अफ़सोस, प्यारे ! तूने अपनी ज़बान से इतना भी न कहा कि-'बेगम ! मैं तेराही हूं!!!' क्यों?"

याक ब ने सिर खुजलाते हुए कहा,-" हज़रत! मुझे आपके हुक्म से कब इनकार हो सकता है ! मगर बेहतर तो यह होता कि आप मुझे आज़ादी के साथ ही साथ यह हुक्म देतीं कि,- याकूब ! तू अब खुशी खुशी अपने बतन जा।"

रजीया,-"नहीं, दोस्त ! प्यारे याकूब! अब मैं ताजीस्त, तुझे हर्गिज़ अपने पास से दूर न करूंगी; और क्यों दोस्तमन ! क्या तू अपनी प्यारी बहन को भी इसी बेमुरौवती के साथ छोड़ जाता, जिस तरह कि तू मुझे छोड़ना चाहता है?"

किन्तु, पाठक ! बेचारा याक ब इस सवाल का क्या जवाब देता! और उसमें जवाब देने की ताकत ही कितनी थी ! इस लिये वह चुप होगया और सिर खुजलाते खुजलाते बोला,-