पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१०५

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


"हुज़र ! मेरा अजीज अयूब भी आज़ाद कर दिया जाता तो बेहतर होता।"

रज़ीया,-" मियां याक ब ! इसके कहने की कोई जरूरत न थी; क्योंकि मैंने दिलही दिल में यह पक्का इरादा कर लिया था कि तुम्हारे साथ ही अयूब भी आज़ाद कर दिया जाय और वह भी कोई वहदा और जागीर पाए।"

याकूब,-" जी हां, हुजूर! और उसका दिल किताबों की सैर करने में बहुत लगता है, इसलिये अगर हुज़र उसे सरकारी कुतुबखाने से पढ़ने के लिये किताबें लेने का हुक्म देदें तो और मिह बानी होगी।"

रज़ीया,-" वल्लाह, यह तो कोई बात ही नहीं है, इसका बंदोबस्त तो मैं बहुत जल्द कर दूंगी।"

निदान, इसी ढब की बातों में रात बीत गई, आस्मान ने कुद- रती सफ़ेद चादर अपने बदन पर डाल ली और उसकी उस हर्कत पर चंचल चिड़ियाएं शोर गुल मचाने लग गई । यह देख रज़ीया ने अपने कलेजे पर पत्थर रख कर याकूब की जान छोड़ी और उसने भी बेगम के हाथ से छुटकारा पाने को ग़नीमत समझा।

रजीया ने सीटी बजाई; जिसकी आवाज़ सुनते ही ज़ोहरा, जो सुरंग के मुहाने पर चुपचाप बड़ी थी, सामने आई और बेगम ने याकब की ओर इशारा करके उससे कहा,-" इनको सुरंग के बाहर पहुंचादे।"

"जो हुक्म हुजूर"कह कर ज़ोहरा सुरंगवाली कोठरी में चली गई और याकब ने उठकर बेगम को सलाम किया। बेगम ने बड़े तपाक के साथ उठ कर उसका हाथ थाम लिया और कहा,-

" दोस्तमन ! आज की शव योंही गुजर गई, मगर मेरी बात न पूरी हुई । खैर कुछ पर्वा नहीं; खुदा ने चाहा तो फिर किसी रोज़ तुमको यहां बुलाकर अपना दिल शाद करूंगी।"

केवल, "बेहतर"-कहकर याक ब ने उस समय अपना पीछा छुड़ाया और बेगम से रुखसत हो, वह जोहरा के साथ सुरंग में होता हुआ उसी तरह उससे बाहर हुआ, जिस तरह कि वह महल तक गया था। रास्ते में ज़ोहरा ने उससे तरह तरह की छेड़छाड़

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