पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/११०

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(चौदहवां
रज़ीयाबेगम।


याकूब,-"खुदा को याद करो, वही पर्वरदिगार हम लोगों का मददगार है; सिवा उसके और कोई दूसरा गरीबपर्वर नहीं है। और प्यारी, सौसन ! इस वक्त मैं तुमसे इसी बारे में कुछ बहस किया चाहता हूं. ज़रा खूध सोच समझ कर जवाब देना।"

सोसन,-"इसी बेगम के साथ निकाह के बारे में?"

याकूब, “हां, इसीके बारे में।"

सौसन,-"क्या बात है?"

याकूब,-" बात बहुतही नाजुक और ख़तरनाक है और अजब नहीं कि बेगम की यह ऐय्याश तबीयत ही उसकी बर्बादी का बायस होगी और उसे बहुत जल्द तबाह कर डालेगी।"

याकूम की इन बातों ने सौसन को दहला दिया और उसने घबरा कर पूछा,-" यह क्यों कर?"

याकूब,-" क्या तुमने उस यूनानी तवारीख की किताब को जी लगा कर पढ़ा है?

सौसन,-" वही जो तुमसे ली थी?”

याकूब,-" हां वही ! उस पर तुमने कुछ गौर किया है?"

सौसन,-"ओहो ! प्यारे ! यह तो तुमने बड़ी बारीकी निकाली! अब मैं बेगम के साथ किसी किस्म के लगाव रखने की सलाह तुम्हें नहीं दे सकती, बल्कि अब तो यों कहती हूं कि जहां तक मुमकिन हो, तुम उससे अपने तई दूर रक्खो और अगर होसके तो यहांसे निकल भागने की कोशिश करो । मैं हर हालत में तुम्हारा साथ दूंगी।"

सौसन की ये बातें सुन कर याकूब बहुतही प्रसन्न हुआ और उसने कहा,-" शुक्र है, खुदा का कि तुमने दरहकीक़त उस किताब को दिल लगा कर पढ़ा और बहुत जल्द ठीक राह पर तुम आगईं। भला,प्यारी ! ज़रा यतलाओ तो सही कि अभी थोड़ी ही देर पहिले तुम इस बात पर जोर दे रही थीं कि,-"मैं बेगम के ख़ातिरखाह उससे आशनाई करलू" मगर अब यकबयक तुम्हारी राय एक दम से पलट क्यों गई?"

सौसन,-"प्यारे ! बेगम के साथ ताल्लुक कर लेने के लिये जो मैं ज़िद कर रही थी, उस वक्त मुझे उस किताब का मुतलक ख़याल न था । मगर तुम्हारे इशा करतेही मेरा ध्यान उस पर गया और