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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१११

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परिच्छेद)
१०३
रङ्गमहल में हलाहल।


अब मैं यही बिहतर समझती हूं कि तुम्हारा बेगम के साथ किसी किस्म के लगाव का रखना बिहतर नहीं । इसको वजह यह है कि उस किताब की रू से यादशाह या सुल्ताना के जो वसूल होने चाहिएं, रज़ीया उससे बिल्कुल बर्खिलाफ़ हो रही है और अपनी पर्वादी आप किया चाहती है । जो हालत आज कल रज़ीया की हो रही है, वही हालत यूनान के बादशाह दारा की लड़की की हुई थी। उसने जवानी के आलम में आगे पीछे का ख़याल छोड़ कर अपने एक हबशी गुलाम के साथ आशनाई कर ली थी और छिपा लुका कर उसे अपने महल में बुलाती थी । आखिर, यह राज छिप न सका और ज़ाहिर हो गया और गुलाम के साथ वह सुल्ताना, जिसका नाम शायद लैला था, मारी गई और सल्तनत एक गैर शख़्स के हाथ में चली गई।"

याकूब,-" बेशक, प्यारी ! तुमने उस किताब को दिल लगा कर पढ़ा है । हां. उस बेगम का नाम लैला ही था । यही नतीजा रजीया का भी होने वाला है। क्योंकि यह इस वक्त जवानी के नशे में चूर हो रही है और उसे अपने नफे नुकसान का मुतलक ख़याल नहीं है । नतीजा इसका यह होगा कि यह किसी न किसी के साथ आशनाई ज़रूर करेगी और बात जाहिर होने पर अपने आशना के साथ दर्धारियों के हाथ से मारी जायगी । अजब नहीं कि यह कार्रवाई उसके किसी भाई की ओर से की जाय और उसे मार कर उसका कोई भाई ही देहली के सरन पर अपना कब्ज़ा करे । क्योंकि भाइयों के कैद कर लेने से इसकी जालिम मां भी इससे खुश नहीं है।"

याकूब की बातों को सौसन ने ध्यान से सुना और उसके चुप होने पर यों कहा,-

"बेशक, प्यारे ! तुम्हारा सोचना बहुत सही है । और अब मैं यही विहतर समझती हूं कि रज़ीया को अपनी दिली स्वाहिश अपने दर्बार के बड़े बड़े अमोर उमराओं पर ज़ाहिर करनो चाहिए और उन्हींकी राय के मुताबिक उसे काम करना चाहिए; जैसा कि सुलताना हमीदा ने किया था।"

याकूब,-"प्यारो ! सौसन ! मैं निहायत खुश हुआ कि तुमने उस यूनानी तवारीख को बड़े ग़ौर के साथ पढ़ा है । अब मैं