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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१९

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परिच्छेद.)
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रङ्गमहल में हलाहल।

रंगभूमि में उस वीर के उतरते ही सभों की दृष्टि उसी पर लग गई और सभी स्त्री पुरुष आपस में उसकी सुन्दरता पर तर्स खाकर थोड़ी ही देर में होनेवाली उसकी अकाल मत्यु पर अपना अपना खेद प्रगट करने लगे। उस बीर ने रंगभूमि में उतरते ही बेगम साहिबा की ओर सिर उठा कर और फिर झुककर सलाम किया और तब भैंसे के साथ लड़ाई छेड़ दी।

इस बात के लिखने में जितनी देर लगी है, वास्तव में वहां उतनी देर नहीं लगी थी और पलक गिरतेही उतना काम हो गया था। क्योंकि ज्योंहीं वह बीर रंगभूमि में उतरा त्योही भैंसे ने उस पर अपना वार किया था; किन्तु उस वीर ने इतनी फुर्ती की कि बेगम की ओर देख कर सलाम भी किया और भैंसे के वार को भी रोका। फिर वह ' नर-पसु-युद्ध' होने लगा। जब तक वे दोनों आपस में लड़ते रहे, तबतक हम एक दूसरे ही वृत्तान्त के लिखने में प्रवृत्त होते हैं।

रजी़या के तख्त के अगल बगल जो दो अत्यन्त सुन्दरी षोड़शी बालिकाएं कुर्सियों पर बैठी थीं, जिनके प्रत्येक अङ्ग पर मदन के साथ यौवन की चढ़ाई अपना अपूर्व रंग दर्सा रही थी; उन दोनों में से जो बेगम के दाहिनी ओर बैठी थी, शाही दर्वार के एक अमीर. उल्-उमरा की लड़की थी और दूसरी एक सर्दार की कन्या थी। दाहिने ओरवाली का नाम सौसन था और बाईं ओरवाली का गुलशन । वे दोनों रज़ीया की मुंहलगी सहेली थीं और दोनो ही पढ़ी लिखी, दस्तकारी में होशियार और कारी थीं।

जब रंगभूमि में वह युवक वीर आकर बिकराल भैंसासुर से लड़ने लगा तो सभी देखने वाले चकित दृष्टि से वह विचित्र दृश्य देखने लगे, किन्तु सभों के चित्त का जो भाव था, सौसन के जी का भाव उससे कुछ भिन्न और विलक्षण था । वह बहुत ही उत्साह भरी दृष्टि से टकटकी बांधकर उस वीर को नख से सिख तलक निहारने और मनही मन उस सुंदर युवक की पूजा करने लग गई गुलशन के चित्त का भाव साधारण था, किन्तु रज़ोया के मन का भाव कैसे हलाहल से मिला हुआ और भयंकर था, इसका हाल फिर कभी लिखा जायगा।

रज़ीया ने बड़े चाव से कहा,--"क्यों, सौसन! यह तो कोई