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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/२०

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१२
(दूसरा
रजी़याबेगम।

अजीब शख्स है!"

सौसन,--"बेशक, हुजूर ! ऐसा जवांमर्द और खूबसूरत जवान तो आज तलक देखने में नहीं आया था। अजब खुदा की शान है कि उसने इस मर्दबच्चे में खूबसूरती और जवांमर्दी कूट कूट कर भर दी है।"

गुलशन,--ओफ़ ! इन्सान भी एक खूखार ज़बर्दस्त हैवान का मुकाबला इस उम्दगी के साथ कर सकता है, इसका कभी ख्वाब भी मैने नहीं देखा था।"

रजीया,--"बेशक, यह खूबरू जवांमर्द कदर करने के काबिल है।"

सौसन,--"जी हां, हुजूर इस शख्श की जहां तक कदर की जाय, थोड़ी होगी; मगर यह है कौन?"

रजीया,--हां! इसे दर्याप्त करना चाहिए, मगर अभी नहीं, तमाशा ख़तम होने के बाद।"

गुलशन,--" और मैं ख़याल करती हूं कि यह बात उस वक्त बहुतही आसानी से जानी जा सकेगी, जब यह शख्स बाद तमाशा ख़तम होने के हुजूर की खिदमत में इनाम लेने के वास्ते हाज़िर होगा।

गुलशन की यह तुच्छाबात यद्यपि सौसन को बहुत ही बुरी लगी और उसने एकबार रज़ीया और गुलशन की ओर सिर उठा कर देखा भी; पर वे दोनों तमाशा देख रही थीं, जिनमें रजीया की आंखों से एक विचित्र प्रकार की ज्योति निकल रही थी और गुलशन की आंखों से आश्चर्य की झलक निकली पड़ती थी।

इतने ही में चारों ओर से, भीड़ में से, बड़ा कोलाहल मच उठा और “वाह वाह” की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी; क्योंकि उस बीर ने लड़ते लड़ते, स्वयं बिना चोट खाए, उस भैंसे को अखाड़े में पछाड़ कर उसके पेट में कटार भोंक दी थी, जिससे वह हाथ पैर पटक रहा था। इस लड़ाई में पावघंटे से जियादे देर न लगी। युवक वीर ने अक्षत शरीर से उस पशु को मार वाह: वाही लूटी; फिर बेगम के इशारा करते ही बात की बात में भीड़ में सन्नाटा छा गया और नगाड़े का बजना भी बन्द कराया गया।

विजयी वीर ने चारों ओर कृतज्ञता भरी दृष्टि से निहार कर बेगम की ओर देत्र, शाहानः सलाम किया और हाथ जोड़कर कहा,--