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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/२१

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परिच्छेद)
१३
रङ्गमहल में हलाहल।

"अगर जनाब सुलताना साहिबा की इज़ाजत हो तो मैं किसी सिपाही के साथ तल्वार की लड़ाई लड़ सकता हूं।"

यह सुन रजी़या ने अपनी उस लौंडी से कुछ कहा, जो पहिले दो दो बार बोल चुकी थी, सो उस लौंडी ने खड़े होकर यों बेगम साहिबा का हुक्म सुनाया,--

"अगर यहां पर कोई शख़्स तल्वार के फ़न में उस्ताद हो तो वह इस जवांमर्द सिपाही के मुकाबले के वास्तेअखाड़े में उतरे । इस लड़ाई के लिये दो तल्वारें काठ को दी जावेंगी, जिसमें किसीकी जान ख़तरे में न आवे; क्योंकि हुजूर बेगम साहिबा की यह दिली ख्वाहिश है कि आज के तमाशे में किसी इन्सान की जान न जावे; चुनांचे जो शख्स इस लड़ाई को जीतेगा, एक हज़ार दीनारें इनाम पावेगा।"

सुलताना की आज्ञा सुनते हीरंगभूमि के प्रबन्धकर्ता ने काठकी दो नल्वारें ला कर, उनमें से एक उस युवक वीर के हाथ में दी और दूसरी वहीं अखाड़े की भूमि में थोड़ी सी गाड़कर खड़ी कर दी । वीर युवक ने अपनी कटार का खून पोछकर उसे अपनी कमर में खोंस लिया और इधर उधर आंख दौड़ाकर वह इस बात का आसरा देखने लगा कि,--अब कौन बहादुर तल्वार खेलने के घास्ते सामने आता है।' किन्तु जब पाव घंटे का समय बीत गया और कोई उसके सामने न आया, तो सुलताना की उसी बांदी ने, जो कई वार बोल चुकी थी, खड़ी हो, फिर तमाशा देखने वालों को कुछ कड़ी कड़ी, पर मीठी मीठो सुनाई, जिसे सुन एक खूब मोटा ताज़ा जवान जांघिया चढ़ा कर अखाड़े में उतरा और सुलताना को सलाम कर के तल्वार उठा कर पैंतरा बदलने लगा।

रंगभूमि में पूरा सन्नाटा छाया हुआ था. सब चित्र लिखे से अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए नकली तल्वार की लड़ाई निरख रहे थे और सभी का चित्त उस विचित्र तमाशे में उलझा हुआ था।

इस लड़ाई की बाज़ी भी हमारे पूर्वपरिचित युवक वीर ने मार ली और मुटल्ले जवान के किए कुछ भी न हुआ। यह लड़ाई लगभग आध घंटे के हुई, इतनी ही देर में युवा ने मोटेमल को पसीने पसीने कर दिया। वह मुटल्ला बार बार चोट खाता, पर अपनी