उपोद्घात।
भारतवर्ष में सदा से सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का राज्य तबतक स्वाधीन भाव से चला आया, जबतक इस देश में सरस्वती और लक्ष्मी का पूरा पूरा आदर रहा; ब्राह्मणों के हाथ में विधिथी, क्षत्रियों के हाथ में खड्ग था, वैश्यों के हाथ में वाणिज्य था और शूद्रों के हाथ में सेवाधर्म था; किन्तु जबसे यह क्रम बिग- ड़ने लगा, ऐक्य के स्थान में फूट ने अपना पैर जमाया और सभी अपने कर्तव्य से च्युत होने लगे, देश की स्वतंत्रता भी ढीली पड़ने लगी और बाहरवालों को ऐसे अवसर में अपना मतलब गांठ लेना सहज होगया।
लाखों बरस, अर्थात सृष्टि के आरंभ काल से यह (भारतवर्ष) स्वाधीन और सारे भूमंडल पर आधिपत्य करता आता था, पर महाभारत के पीछे यहांवालों की बुद्धि कुछ ऐसी बिगड़ गई और आपस की फूट के कारण जयचंद ने ऐसा चौका लगाया कि यह स्वाधीन देश सदा के लिये गुलामी की जंजीर से जकड़ दिया गया, जिससे अब इसका छुटकारा पाना कदाचित कठिन ही नहीं, वरना असम्भव भी है।
इसदेश (भारतवर्ष) पर पश्चिमवालों की चढ़ाइयों का जो ठीक ठीक पता मिलता है, वह यह है कि ईस्वी सन् से ३३१ वर्ष पहिले यूनान के प्रतापी बादशाह सिकंदर ने ईरान के बादशाह दारा को जीतकर इस देशपर चढ़ाई की थी। वह एकलाख, बीस हज़ार फ़ौज के साथ सिंधुनदी में पुल बांधकर पार उतरा, किन्तु झेलम के इस पार केवल ग्यारह हज़ार सवार अपने साथ लाया था। उस समय मगध की गद्दीपर नागवंशी राजा महानन्द था, तथा और भी बहुत से राजे महाराजे इधर उधर राज करते थे। यद्यपि बहुत से राजाओं ने सिकंदर की आधीनता स्वीकार की थी, किन्तु पंजाब का राजा 'पुरु' झेलम के इस पार तीस पज़ार पैदल, चार हज़ार सवार और बहुत से हाथी साथ लेकर सिकन्दर से लड़ा। यदि संग्रामभूमि में उसके हाथी के बिगड़ने से उसकी फ़ौज भाग न खड़ी होती तो वह सिकन्दर को हरा चुका था, किन्तु ऐसा न हुआ और उले पराजित होना पड़ा ! फिर जब राजा पुरु लिक- न्दर के पास गया तो उससे सिकन्दर ने पूछा:--'कहो ! अब हम