सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
२५
रङ्गमहल में हलाहल।

गुलशन की ये गर्व से भरी हुई बातें सरल-हदया सुन्दरी सौसन को बहुतही कडुई लगी, इसलिये उसने कुछ रूखेपन के साथ कहा,--

"तुम्हारा फ़र्माना बजा है, बी, गुलशन ! आज मैने यह बात बखूबी समझली कि तुम्हारे ऐसी खूबरू नाज़नी दुनियां में किसी गैर की खूबसूरती या नज़ाकत की कदर हर्गिज़ नहीं कर सकती। मगर क्यों हज़रत ! जब कि बाहरी खूबसूरती या चमक दमक से तुम इतनी नफ़रत करती हो तो बेशकीमत जवाहिर के टुकड़े में तुम तब तक हर्गिज़ हाथ न लगाती होगी, जबतक कि उसकी अन्दरूनी हालत से वाकिफ़ न हो लेतो होगी ! क्यों, यह तो ठीक हुआ न ! और सुनो तो सही, यह नर्गिस का फूल, जो तुम्हारे हाथ में है, जिसे कि तुमने अभी तोड़ा है, मेहबानी करके सच बतलाना कि क्या तुमने इमपर दिल चलाने या हाथ डालने के पेश्तर इसकी भीतरी हालत पर बबी गौर कर लिया था?”

गुलशन,-( सौसन के मुखड़े पर नजर गड़ाकर ) "अल्लाह ! अल्लाह ! खैर तो है; बी, सौसन ! आज तो तुमने बेतरह मुझे कायल किया ! बेशक, तुम्हारी दलीलों ने मुझे आज लाजवाब कर दिया और अब यही जी चाहता है कि उस कोशिश में मैं अपने तई भी क्यों न शरीक करदूं जो कि इन गुलामों को आजादी देने के वास्ते की जायं।"

सौसन--( उठकर और गुलशन को गले लगा कर ) "मेरी, दोस्त, गुलशन ! खुदा करे, उन बेचारों को जल्द आज़ादी नसीब हो और उसकी दस्तयाबी में तुम्हें नामबरी मिले।"

इतने ही में एकाएक रज़ीया वहीं पहुंच गई और उसने सौसन को गले लगा कर कहा,--

“सौसन ! इस वक्त मैं तेरी उन दलीलों से, जो कि तू गुलशन के साथ कर रही थी, निहायत खुश हुई हूं और खुदा चाहेगा तो बहुत जल्द मैं तेरी ख़ाहिश बमुजिब उन गुलामों को गुलामी से आज़ाद कर, शाही दर्बार में कोई अच्छा वहदा दूंगी, जिससे वे दोनों मेरी नेकनीयती, क़दरदानी, फ़ैय्याज़ी और ग़रीबपर्वरी को ताज़ीस्त न भूलेंगे।"

बेगम के इन वाक्यों ने सुंदरी सौसन के दिल के साथ वह

(४) न०