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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/३९

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परिच्छेद
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रङ्गमहल में हलाहल।

बुदाहालय) कुछ दिनों के बाद उस बुर्देफ़रोश का काफ़ला हिन्दुस्तान में आया और उस काफ़ले के सर्दार ने इन दोनों गुलामों को हजूर के वालिद साहिब की ख़िदमत में नज़र किया हो । तब से ये दोनों शाही दर्बार में मौजूद हैं । ये दोनो अरबी और फ़ारसी में अच्छी लियाक़त रखते हैं और इन दोनों में से याकूब दारोगा अस्पख़ानः और उसका शागिर्द अयूब, उसका ताईद बनाया गया है।'

“यही इन गुलामों का क़िस्सा है, जो हुजूर की ख़िदमत में अर्ज़ किया गया।"

जबतक खुर्शद याकूब और अयूब के बारे में कहता रहा, उमंग भरे नेत्रों को उसपर गड़ाए हुई सौसन और गुलशन बड़े चाव के साथ उन बातों को सुनती रहीं, किन्तु रज़ीया ने अत्यन्त गंभीर भाव को धारण किया था, तो भी उसकी बड़ी बड़ी और नुकीली आंखों से रह रह कर एक विचित्र ढंग की चमक निकली पड़ती थी। इन तीनों के अलावे वहां पर एक लौंडी भी ऐसी थी, कि जो सन्नाटा मारे हुई उन गुलामों की कहानी बड़े उत्साह के साथ सुनती रही।

गुलामों की कहानी पूरी होने पर बेगम ने खुर्शद को अपने हाथ से पान दिया और वह शाहानः आदाब बजा लाकर वहां से रुखसत हुआ । वज़ीर के जानेपर बेगम ने उसी लौंडी की ओर देवकर, जिसने आज वजीर के आने की ख़बर दी थी और हुक्म़ पाकर उसे बुला भी लाई थी; कहा,-

"ज़ोहरा! गानेवालियों को हाज़िर कर।"

"जो हुक्म, हुजूर!" इतना कहकर ज़ोहरा वहांसे चली गई और रजीया ने सौसन की ओर देखकर कहा,-

"बी, सौसन! बगैर शराब के तो मज़ा बिलकुल किरकिरा हो रहा है।"

सौसन,-" जी हां, हजूर !”

फिर उसने बांदियों की ओर देखा और कई लौंडियों ने शराब से भरी याकृती सुराही, ज़मुर्रद के प्याले, आबखो़रे, गजक और मेवे की रकाबियां लाकर क़िते से चुन दी। सौसन ने शराब से भर कर प्याला बेगम के मुंह से लगाया और उसे खाली करके बेगम ने