पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/४५

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।

हैं? " इत्यादि इत्यादि।

इसी प्रकार के सैकड़ों प्रश्नों को सुनकर बुड्ढे फ़क़ीर ने कहा,-- "भला, मिहरबानी करके आपलोग यह तो बतलाएं कि आप लोग इस बुतख़ाने की क्यों बर्वादो किया चाहते हैं?"

एक मुसलमान,-" फ़लां, मसजिद में किसी बदमाश हिन्दू ने सूवर का गोश्त फेंका है।"

बुड्ढा फकीर,--किसी हिन्दू ने (!) सूवर का गोश्त (!) अच्छा, इसका क्या सुबूत है कि वह गोश्त सूवर का होगा?"

दूसरा मुसलमान,-"सिवाय, उस गोश्त के और दूसरा गोश्त मसजिद में क्यों फेंका जायगा?"

बुड्ढा फ़क़ीर,-"यह कोई माकूल जवाब नहीं है । फिर आप फ़र्माते हैं कि, "किसी हिन्दू ने फेंका ” अच्छा, आप लोंगो ने किसी हिन्दू को गोश्त फेंकते देखा है?"

तीसरा मुसलमान,-" देखा नहीं तो क्या हुआ, सिवाय हिन्दू के और ऐसी शरारत कौन करेगा?"

बुड्ढा फ़कीर--"यह सरासर आपलोगों की ज़ियादती है। पहिले तो इसी बात का आपलोगों के पास कोई सुबूत नहीं है कि वह गोश्त सूवर का ही होगा; तिस पर तुर्रा यह कि किसी ने किसी हिन्दू को उसे फेंकते भी नहीं देखा है । ऐसी हालत में यह सरासर जुल्म नहीं तो क्या है?"

चौथा मुसलमान,--शाह साहब, कसम कुरान की, मैंने एक हिन्दू को वह गोश्त. फेंकते अपनी आंखों से देखा है, जो दरहक़ीक़त सूवर का ही होगा।"

बुड्ढा फ़कीर,-"लाहौलबलाकूवत ! यह दूसरी बंदिश निकाली गई ! ख़ैर मानलेता हूं कि किसी नालायक हिन्दू ने ऐसी शरारत की होगी; फिर इसकी क्या ज़रूरत है कि आपलोग इस बुतख़ाने के नेस्तनाबूद कर डालने पर कमर बांधे और इसके अन्दर जो बेचारे हिन्दू मिलें, उनकी जान लेने पर आमादा हों।

पांचवां मुसलमान,-"जनाच ! मसजिद के नापाक करने का बदला इस वुतखाने के ढाह देने और इसके अन्दर जितने हिन्दू हों, सभों के कत्ल कर डालने या मुसलमान बना लेने से ही चुकाया जा सकता है।"